Posted by: PRIYANKAR | जून 5, 2007

आंखें

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल की एक कविता

 

 

आंखें

 

आंखें संसार के सबसे सुंदर दृश्य हैं

इसीलिए उनमें दिखने वाले दृश्य और भी सुंदर हो उठते हैं

उनमें एक पेड़ सिहरता है एक बादल उड़ता है  नीला रंग प्रकट होता है

सहसा अतीत की कोई चमक लौटती है

या कुछ ऐसी चीज़ें झलक उठती हैं जो दुनिया में अभी आने को हैं

वे दो पृथ्वियों की तरह हैं

प्रेम से भरी हुई जब वे दूसरी आंखों को देखती हैं

तो देखते ही देखते कट जाते हैं लंबे और बुरे दिन

 

यह एक पुरानी कहानी है

कौन जानता है इस बीच उन्हें क्या-क्या देखना पड़ा

और दुनिया में सुंदर चीज़ें किस तरह नष्ट होती चली गईं

अब उनमें दिखता है एक ढहा हुआ घर कुछ हिलती-डुलती छायाएं

एक पुरानी लालटेन जिसका कांच काला पड़  गया है

वे प्रकाश सोखती रहती हैं कुछ नहीं कहतीं

सतत आश्चर्य में खुली रहती हैं

चेहरे पर शोभा की वस्तुएं किसी विज्ञापन में सजी हुई ।

 

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(समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार)

 

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प्रतिक्रियाएँ

  1. मेरा एक ट्रेन कंट्रोलर है आगरा में – सरवर अली. फोन पर बात होने पर दो लाइनें जरूर सुनाता है/या मै अनुरोध करता हूं सुनाने को.

    एक दिन सुनाया :

    तुम तो समन्दर की बात करते हो,

    लोग आंखों में डूब जाते हैं.

  2. सुंदर कविता । ज्ञान दत्‍त जी की बात से दुष्‍यंत का शेर याद आ गया, अपने को कुछ ज्‍यादा ही पसंद है । एक जंगल है तेरी आंखों में जिसमें मैं खो जाता हूं, तू किसी रेल सी गुजरती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूं ।
    आपसे एक निवेदन है । कई बरस पहले एकांत श्रीवास्‍तव की कुछ कविताएं आई थीं रंगों पर । पीला हरा लाल सफेद । सब पर अलग अलग । क्‍या आप उन्‍हें प्रस्‍तुत करेंगे । मेरे भीतर जाने कब से विकलता है उन्‍हें पढ़ने की ।

  3. मंगलेश डबराल की कविता आँखे बहुत भाई. धन्यवाद प्रियंकर जी इस पेशकश के लिये भी हमेशा की तरह.

  4. हाज़ि‍री बजा रहा हूं…

  5. मंगलेश डबराल की कविता आँखें, आँखें खोलने वाली है।

    वे दो पृथ्वियों की तरह हैं

    प्रेम से भरी हुई जब वे दूसरी आंखों को देखती हैं

    तो देखते ही देखते कट जाते हैं लंबे और बुरे दिन

    काश। मंगलेश डबराल आँखों के माध्यम से जो दिखाना चाह रहे हैं, हम देख सकें।


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