Posted by: PRIYANKAR | जुलाई 22, 2010

आलोक धन्वा की एक कविता

नदियाँ

इछामती और मेघना
महानन्दा
रावी और झेलम
गंगा गोदावरी
नर्मदा और घाघरा
नाम लेते हुए भी तकलीफ़ होती है

उनसे उतनी ही मुलाक़ात होती है
जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं

और उस समय भी दिमाग़
कितना कम पास जा पाता है
दिमाग़ तो भरा रहता है
लुटेरों के बाज़ार के शोर से।

*****


प्रतिक्रियाएँ

  1. बहुत बढ़िया कविता
    आभार

  2. बेहतरीन…

  3. पहल सम्मान के अवसर पर आलोक जी से मुलाकात हुई थी ..यह उनकी बेहतरीन कविता है । आभार आपका ।

  4. Very good poem. Narrates the alienation of the modern man very sensitively. It’s always wonderful to read poems of Sh. Aalok Dhanwa.- Hindi Sahitya, aadhunikhindisahitya.wordpress.com


टिप्पणी करे

श्रेणी