नदियाँ
इछामती और मेघना
महानन्दा
रावी और झेलम
गंगा गोदावरी
नर्मदा और घाघरा
नाम लेते हुए भी तकलीफ़ होती है
उनसे उतनी ही मुलाक़ात होती है
जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं
और उस समय भी दिमाग़
कितना कम पास जा पाता है
दिमाग़ तो भरा रहता है
लुटेरों के बाज़ार के शोर से।
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बहुत बढ़िया कविता
आभार
By: स्वार्थ on जुलाई 22, 2010
at 6:04 अपराह्न
बेहतरीन…
By: रवि कुमार, रावतभाटा on जुलाई 25, 2010
at 5:00 पूर्वाह्न
पहल सम्मान के अवसर पर आलोक जी से मुलाकात हुई थी ..यह उनकी बेहतरीन कविता है । आभार आपका ।
By: शरद कोकास on अगस्त 6, 2010
at 4:25 अपराह्न
Very good poem. Narrates the alienation of the modern man very sensitively. It’s always wonderful to read poems of Sh. Aalok Dhanwa.- Hindi Sahitya, aadhunikhindisahitya.wordpress.com
By: Hindi Sahitya on अक्टूबर 11, 2010
at 11:52 पूर्वाह्न