ज्ञान के अन्य अनुशासनों की तरह कविता भी जीवन को समझने का एक उपक्रम है, अलबत्ता अधिक आनंदप्रद उपक्रम । कविता में मन को रंजित करने का तत्व होता है पर कविता प्रचलित अर्थों में मनोरंजन की विधा नहीं है। कविता हमारे अंतर्जगत को आलोकित करती है । वह भाषा की स्मृति है । खांटी दुनियादार लोगों की जीवन-परिधि में कविता कदाचित विजातीय तत्व हो सकती है, पर कविता के लोकतंत्र में रहने वाले सहृदय सामाजिकों के लिये कविता — सोशल इंजीनियरिंग का — प्रबोधन का मार्ग है । कविता मनुष्यता की पुकार है । प्रार्थना का सबसे बेहतर तरीका । जीवन में जो कुछ सुघड़ और सुन्दर है कविता उसे बचाने का सबसे सशक्त माध्यम है । कठिन से कठिन दौर में भी कविता हमें प्राणवान रखती है और सीख देती है कि कल्पना और सपनों का संसार अनंत है ।
कविता एक किस्म का सामाजिक संवाद है । पर यह संवाद इधर कुछ एकपक्षीय-सा हो चला है । कवि और पाठक/श्रोता के बीच एक किस्म की संवादहीनता की स्थिति बनती दिख रही है । यह अबोलापन निश्चित रूप से कविता के इलाके को — उसके प्रभाव-क्षेत्र को — सीमित कर रहा है । यह सच है कि कोई भी नकली सभ्यता कविता से उसके रंग,ध्वनियां और संकेत नहीं छीन सकती। पर इधर कविता पर कुछ नए दबाव बन रहे हैं। कविता की लोकप्रियता और प्रभावकारिता के बारे में पहले भी कई रोचक बहसें हो चुकी हैं । अतः इस चिट्ठे का उद्देश्य काव्य-विमर्श मात्र नहीं है । यह चिट्ठा हिंदी कविता तथा हिंदी में अनूदित अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं की अनूठी कविताओं का प्रतिनिधि काव्य-मंच बनने का आकांक्षा-स्थल है — सभी काव्यप्रेमियों का आत्मीय संवाद-स्थल जहां बेहरीन कविताएं तो होंगी ही , साथ ही होंगी उन कविताओं पर आपकी सुचिंतित टिप्पणियां ।
अनहद-नाद बडा ही सुन्दर नाम है आपके ब्लॉग का ईश्वर से प्रार्थना है कि नाद निरन्तर सुनाई पडती रहे। शुभकामनाओ सहित
By: प्रमेन्द्र प्रताप सिंह on अगस्त 22, 2006
at 1:09 अपराह्न
कविता के बारे में आपके विचार पढ़कर उसके बारे में मेरे विचारों की नकारात्मकता में कमी हुई है। नयी रची कविताओं को पढ़कर मन इतना खिन्न हो जाता है कि तुरन्त उससे मुह फेर लेता हूँ। शायद अच्छी कविताओं तक मेरी पहुँच ही नही है।
मेरी एक और जिज्ञासा है – कविता और अकविता(गद्य) में अन्तर जानने समझने का। आशा है आप इस पर कभी प्रकाश डालेंगे।
By: Anunad on अगस्त 29, 2006
at 6:16 अपराह्न
प्रमेन्द्र और अनुनाद को धन्यवाद मालूम होवे . कविता और गद्य के बीच के अंतर और उनके अंतर्सम्बंध पर बहुत कुछ मन में है . लिखने का वादा रहा .
By: प्रियंकर on अक्टूबर 5, 2006
at 6:38 पूर्वाह्न