वे इसी पृथ्वी पर हैं
कहीं न कहीं कुछ न कुछ लोग हैं जरूर
जो इस पृथ्वी को अपनी पीठ पर
कच्छपों की तरह धारण किए हुए हैं
बचाए हुए हैं उसे
अपने ही नरक में डूबने से
वे लोग हैं और बेहद नामालूम घरों में रहते हैं
इतने नामालूम कि कोई उनका पता
ठीक-ठीक बता नहीं सकता
उनके अपने नाम हैं लेकिन वे
इतने साधारण और इतने आमफ़हम हैं
कि किसी को उनके नाम
सही-सही याद नहीं रहते
उनके अपने चेहरे हैं लेकिन वे
एक-दूसरे में इतने घुले-मिले रहते हैं
कि कोई उन्हें देखते ही पहचान नहीं पाता
वे हैं, और इसी पृथ्वी पर हैं
और यह पृथ्वी उन्हीं की पीठ पर टिकी हुई है
और सबसे मजेदार बात तो यह है कि उन्हें
रत्ती भर यह अन्देशा नहीं
कि उन्हीं की पीठ पर टिकी हुई है यह पृथ्वी ।
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( कवि की तस्वीर साभार )
आपका इस नई दुनिया मे स्वागत है
By: प्रमेन्द्र प्रताप सिंह on अगस्त 22, 2006
at 1:01 अपराह्न
किसी भी सहयोग के लिये मै सब सदा प्रस्तुत हू बस आप लिखते रहिये
By: प्रमेन्द्र प्रताप सिंह on अगस्त 22, 2006
at 1:04 अपराह्न
स्वागत है आपका, हिन्दी के चिठ्ठा जगत मे.
By: समीर लाल on अगस्त 22, 2006
at 3:39 अपराह्न
बहुत ही सुंदर कविता है। साहित्य के गर्भ से ऐसे रत्न निकाल हम तक पहुँचाने का धन्यवाद।
By: Nidhi on अगस्त 29, 2006
at 8:36 पूर्वाह्न
प्रमेन्द्र,समीर और निधि — आप सभी के प्रति आभार !
ऐसे ही हौसला बढाते रहें . बेहतरीन कविताएं आप तक आती रहेंगी .
By: प्रियंकर on अक्टूबर 5, 2006
at 6:42 पूर्वाह्न
सुन्दर कविता । पढ़ते हुए राजेन्द्र राजन की ’ मनुष्यता के मोर्चे पर’ याद आई । हमारे जैसे अनाड़ियों के लिए हिन्दी सहित्य का झरोखा आपका ’अनहदनाद’ ही है । मेहरबानी ।
By: अफ़लातून on जुलाई 25, 2009
at 4:04 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर। बाँटने के लिए धन्यवाद।
By: Laxmi N. Gupta on जुलाई 28, 2009
at 9:38 अपराह्न
bhagwat rawat ki ek lambi kavita kahte hain ki delhi ki awohava kuchh aur hai jo unhone bimari ke dauran likhi thi, naya jnanodaya july,2009 mein sambhavat prakashit hui thi kya uski posting kar sakte hain ? gazab ki kavita hai yah priyankar jee.
arun hota
By: arunhota on फ़रवरी 2, 2010
at 2:14 अपराह्न
एक बहुत ही संवेदनशील और प्रिय कवि जिनसे महज एक दफा मिलना हुआ…;उनकी कविताएं सदैव हमारे साथ रहेंगी……
By: devdeep on मई 26, 2012
at 4:29 पूर्वाह्न