आधी रात के रंग (कविता और चित्र संग्रह) : विजेन्द्र
( कृतिओर प्रकाशन, सी-133, वैशाली नगर, जयपुर – 302021 , मूल्य : 495 रु.)
अंतरअनुशासनिकता का पराग/…2
प्रियंकर पालीवाल
काव्य संकलन ‘ आधी रात के रंग ‘ न केवल विजेन्द्र की काव्य-दृष्टि को पूरी तरह खोलकर हमारे सामने रखता है, वरन यह समूची प्रगतिशील काव्य-परम्परा के मानक तय करता है । एक स्तर पर यह संकलन लोकोन्मुखी परम्परा के एक चर्चित कवि की सौंदर्यशास्त्रीय मान्यताओं का घोषणापत्र भी है । एक मुक्त संवाद जिसमें कवि-चित्रकार-गायक परस्पर संवाद करते हैं, एक-दूसरे का समर्थन करते हैं तथा एक-दूसरे को सावधान-सावचेत भी करते हैं । संकलन की प्रथम कविता ‘कवि’ किसी कवि विशेष की आत्म छवि मात्र नहीं है, यह उस जन कवि का ‘मैनिफेस्टो’ है जिसे ऋग्वेद में मनीषी और ईश्वर कहा गया है । यह कविता समस्त कवि-कुल का जीवन गीत है :
“एक मुक्त संवाद —
आत्मीय क्षणों में कविता ही है
जहां मैं —
तुमसे कुछ छिपाऊं नहीं
सुंदर चीजों को अमरता प्राप्त हो
यही मेरी कामना है
जबकि मनुष्य उच्च लक्ष्य के लिए
प्रेरित रहें !
हर बार मुझे तो खोना-ही-खोना है
क्योंकि कविता को जीवित रखना
कोई आसान काम नहीं
सिवाय जीवन तप के ।
x x x x x x x x x x x
गाओ, गाओ……..ओ कवि ऐसा
जिससे टूटे और निराश लोग
जीवन को जीने योग्य समझें ।
हृदय से उमड़े शब्द
आत्मा का उजास कहते हैं ।
(कवि)
‘रंगो की स्वायत्तता’ कविता में कवि रंगों के संसार में प्रवेश करता है और वहां से अनुशासनिक हदबंदी को तोड़ते हुए संगीत के सुरीले इलाके में :
रंगों की स्वायत्तता में भी
कविता है —
x x x x x x x x x x
रंग उन रूपकों की तरह हैं
जो करते हैं कैन्वास को स्पंदित
x x x x x x x x x x x x
……………….ओ रंगों
दृश्य क्षितिज रचकर
मुझे कविता की ऐसी संगति दो
जहां मैं अपनी आत्मा का
आरोह-अवरोह सुन सकूं ।
‘गायक’ कविता में गायक को उसके दायित्व का बोध कराते हुए कवि कहता है :
तुम वे गीत भी गाओ
जो मनुष्य की यंत्रणाएं बताते हैं ।
‘मिथक का सच’ कविता में कवि स्वयं से भी यही अपेक्षा रखता है :
ओ मेरे निजी गान
तू दूसरों का भी बन
एक सच्चा प्रगतिशील कवि परंपरा को किस तरह निरखता और परखता है, ‘आद्याशक्ति दुर्गा’ कविता इसका उत्कृष्ट उदाहरण है । ‘प्रकृति और मैं’ कविता पर्यावरण प्रदूषण पर एक जागरूक कवि की तीखी टिप्पणी है । ‘नागफणी’ में कवि परिवेश से कटे तथाकथित आधुनिकतावादियों के सौंदर्यबोध के छद्म को उघाड़कर सामने रखता है ।
‘आधी रात के रंग’ काव्य-चत्र संग्रह एक ऐसे प्रगतिशील कवि की कविताओं और चत्रों का अनुपम संकलन है जो ‘अपनी जड़ों का बहुत ऋणी’ है और जिसकी कविताओं में देशज परंपराओं का भरपूर पोषक रस है । परस्पर आंतरिक संगति से युक्त इन चित्रों और कविताओं का अंतर्छंद एक है । अमूर्तन के बावजूद विजेन्द्र के चत्रों का सूक्ष्म अर्थ स्वयं प्रकाशित है । ‘आधी रात के रंग’ संकलन में दृढ़ इच्छा शक्ति और संश्लिष्ट जीवनबोध वाले दृष्टिवान कवि की ‘जीवन के तप और ताप की कविताएं’ तो हैं ही, उन कविताओं का बेहतरीन अंग्रेजी अनुवाद तथा सघन ऐन्द्रिकता से भरे-पूरे उनके बहुरंगी चित्र भी संग्रहीत हैं । यह संकलन इस विपन्न समय में समृद्धि का बोध करानेवाली आंतरिक रचनात्मक जुगलबंदी की अनुपम और विरल प्रस्तुति है।
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संपर्क : priyankarpaliwal@gmail.com
अच्छी समीक्षा !
By: प्रत्यक्षा on नवम्बर 10, 2006
at 3:59 पूर्वाह्न
आधी रात के रंग की समीक्षा काव्य संग्रह पढने के लिये प्रेरती है . लोक अब लोक में नहीं कविता में तो है . अज़ायबघर में जाने से बच गया . कविता से लोक की वापसी संभव है . आप ऐसे ही लोकायत बने रहिये .
By: आशुतोष on नवम्बर 10, 2006
at 12:02 अपराह्न
प्रत्यक्षा और आशुतोष ,
तारीफ़ के लिए शुक्रिया . कोशिश करूंगा कि लोकायत बना रहूं .
By: प्रियंकर on दिसम्बर 1, 2006
at 12:57 अपराह्न