Posted by: PRIYANKAR | नवम्बर 29, 2006

कमी

महेन्द्र

महेन्द्र सिंह पूनिया की एक कविता

 

कमी

  

दाल में कम पड़े नमक की तरह

जीवन में कहीं कुछ कम है

 

क्या कम है ?

सरसों भी फूली हुई है खेतों में

आम पर आ गया है बौर

कूक रही है कोयल भी उस पर

तुम भी बैठी हो पास में

 

साइबेरिया के सारस लौट रहे हैं

कतार बांध कर अपने घरों को

झबरी कुतिया ने दिये हैं चार-चार पिल्ले

 

मां भी तो हैं स्वस्थ

पिता गए हैं खेत देखने

कई दिनों के बाद

फिर भी दाल में कम पड़े नमक की तरह

जीवन में कहीं कुछ कम है

 

क्या कम है ?

क्या दुनिया के नक्शे पर से

इराक कम है,फ़िलिस्तीन कम है

अफ़गानिस्तान कम है या नेपाल कम है ?

 

क्या तारीख की किताबों में

मार्क्स कम है, वाल्टेयर कम है

रूसो कम है, हारून रशीद कम है

 

क्या किस्सागोई में

अलीबाबा कम है

तोता-मैना कम है

हातिमताई कम है

 

बगदाद के संग्रहालय से

फूलों वाले गुलदान के अलावा

क्या-क्या कम है —

 

क्या यही नियम है

कि सरसों, आम फूलें तो

हम कहें कि गम कम है

 

उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए

मैने पूछा —

“क्या तुम बता सकती हो

क्या कम है ?”

देखती रही आंखों में

कुछ नहीं बोली वह

 

आंगन में रखे रेडियो पर

साहिर बोल रहा था

“हवस-नसीब नज़र को कहीं करार नहीं

मैं मुन्तज़िर हूं मगर तेरा इन्तज़ार नहीं ।”

 

**********

 

कवि परिचय :

बेहद संवेदनशील युवा कवि . पहला काव्य संकलन और गज़ल संग्रह प्रकाशन के लिए तैयार . भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी . सिलीगुड़ी  (प०बं०) में पदस्थापित .

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Responses

  1. bahut khoob

  2. क्या बात है.साधु-साधु !

  3. वाह ! क्या बात है !


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