Posted by: PRIYANKAR | फ़रवरी 15, 2007

प्रियंकर की एक कविता

नंदिनी के लिए

 

नंदिनी
मेरी बहन
कहती है
मैं लिखूं उस पर एक कविता
उसे कैसे समझाऊं कि
कविता लिखने से
कहीं अधिक मुश्किल है
कविता पर लिखना
यानी कितना कठिन है
शब्द में भाषा में
व्यक्तित्व का वैसे का वैसा दिखना

वह मानेगी ही नहीं
यह सच 
कि  कविता को जीना
उसके द्वारा संभव है
पर जीवन की लय को
कागज पर उतारना
मेरे लिये असंभव है

मैं उसे कैसे बतलाऊं
ये छोटे-छोटे सच
कि उसकी मुस्कराहट को
कविता में अभिव्यक्त
नहीं किया जा सकता
जैसे दीपक लिख देने मात्र से
प्रकाश का अहसास
नहीं किया जा सकता

उसे कैसे विश्वास दिलाऊं 
कि  जब मैं लिखता हूं
रागात्मक संबंध पर

आपसी विश्वास के अनुबंध पर
या लिखता हूं
स्नेह पर सुगंध पर
तो प्राणशक्ति वही होती है

अब जबकि
तटों के अतिक्रमण को
उद्धत है कविता की नदी
शील और मर्यादा की
इस भावी वाहिका को
कैसे समझाया जाए कि
खण्डित लय वाली कविताएं
नहीं हो सकतीं उसका प्रतीक
प्रतिध्वनित नहीं हो सकता
उनकी अंतर्वस्तु से
उसके जीवन का
वह सहज संगीत

मैं कैसे कहूं
इस नन्हीं लड़की से 
कि  वह
कविता से ज्यादा बड़ी है
शब्दों की समूची चतुराई
उसके आगे
हाथ बांधे खड़ी है

अब जबकि
मैं हार चुका हूं
आप ही विश्वास दिलाइए
मेरे पास उसकी निश्छलता को
प्रतिबिम्बित करने वाले
पारदर्शी शब्द नहीं हैं
इतने चटख
शब्द भी नहीं हैं जो
उसके सतरंगे सपनों को
व्यापक फलक दें
ना ही हैं इतने तरल शब्द
जो उसकी भवनाओं की
सच्ची झलक दें

नन्दिनी
मेरी छोटी बहन
शुद्ध संभावना है
मुझे नहीं पता
संभावनाओं का काफ़िला
भविष्य की अबूझ यात्रा पर
किस रास्ते से जाता है
तो अब
शब्द की तीनों शक्तियों को
साक्षी मान कर
मुझे स्वीकार कर ही लेना चाहिए 
कि  संभावनाओं पर लिखना

मुझे नहीं आता है ।

 

*********


Responses

  1. वैसे भी चंचलता को कविता रूपी खिड़की से बांधा नहीं जा सकता क्योंकि उसकी
    संपूर्णता ही उसका आकाश है…बहुत सुंदर और अपने मनोमय दृष्टिकोणों के मध्य जो जंग है उसे आपने स्पष्टतया उभारा है…धन्यवाद!!

  2. क्या सधी हुई लय ।एक अपनापन।छन्द छोड़ कर भी जो शक्ति है ,उस पर आज की ज्यादातर कविता खाली जा रही हैं।(यह टिप्पणी १९८१ में भवानीबाबू से मिली टिप्पणी से प्रेरित है)

  3. उसे कैसे विश्वास दिलाऊं
    कि जब मैं लिखता हूं
    रागात्मक संबंध पर
    आपसी विश्वास के अनुबंध पर
    या लिखता हूं
    स्नेह पर सुगंध पर
    तो प्राणशक्ति वही होती है

    अहा.. सुंदर रचना..

  4. प्रियंकर जी,
    वह मानेगी ही नहीं
    यह सच
    कि कविता को जीना
    उसके द्वारा संभव है
    पर जीवन की लय को
    कागज पर उतारना
    मेरे लिये असंभव है
    बहुत खूब.

  5. उसे कैसे समझाऊं कि
    कविता लिखने से
    कहीं अधिक मुश्किल है
    कविता पर लिखना

    🙂
    बहुत सुन्दर । सब के लिए कविताएँ लिखी जाती हैं पर शायद ही बहन पर कोई लिखता है । अब कारण समझ आया ।
    घुघूती बासूती
    ghughutibasuti.blogspot.com

  6. प्रियंकर जी,

    कविता पढ़कर आनंद आ गया …बहुत ही सहज रचना …बधाई

    आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है…धन्यवाद

  7. priyankarji,
    Aap se eersha hoti hai, bahut achcha

  8. क्या कहूं सब पहले ही इतना कुछ कह चुके हैं.. बस इतना ही की बहुत स्पष्ट भाव हैं और द्वंद भी.. भाई का अनुराग बहन के प्रति.. और उसकी ज़िद के आगे झुका कवि मन.. कहीं कोई कमी न रह जाये उसको समेटने में.. बहुत खूब .

  9. प्रियंकर जी,

    आपसे संपर्क करने का कोई साधन सुझायें……कुछ नहीं तो अपना ई मेल पता ही बतायें ।

    धन्यवाद

  10. बहुत ही सुन्दर कविता!! कई दिनों बाद इतने सहज और सरल भावों वाली कविता पढी. बहुत अच्छा लगा.


एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

श्रेणी

%d bloggers like this: