कुछ और
भाइयो
बात थी कुछ और
जैसी कही गई
या समझी गई
वैसी न थी
या जैसी कि बन गई
जहां तक कुछ और की बात है
तो उसके बारे में कुछ और भी कहा जा सकता है
जैसे हम करते रहे कुछ-कुछ
बहुत कुछ करते रहे जबकि
हमें करना था कुछ और
और जैसे हम कहते रहे
हमें कुछ और वक्त चाहिए
जबकि सच तो ये है कि हमें चाहिए था
वक्त ही कुछ और ।
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
सच ! हमें भी चाहिये था वक्त ही कुछ और ।
By: प्रत्यक्षा on मार्च 14, 2007
at 11:52 पूर्वाह्न
जबकि सच तो ये है कि हमें चाहिए था,वक्त ही कुछ और ।
अच्छा है!
By: अनूप शुक्ला on मार्च 14, 2007
at 2:27 अपराह्न
बहुत खूब-सभी कुछ तो कह दिया जबकि कहना था कुछ और!!
वाह, क्या बात है. प्रियंकर भाई, आप लाते बहुत बढ़िया चुनिंदा सामग्री हैं! बधाई!!
By: समीर लाल on मार्च 14, 2007
at 3:13 अपराह्न
a gud poetry.. nice to read.. gud collection..
By: manya on मार्च 14, 2007
at 4:03 अपराह्न
….जबकि सच तो ये है कि हमें चाहिए था
वक्त ही कुछ और ।
By: धीरेश सैनी on मार्च 20, 2009
at 11:15 पूर्वाह्न