रविदत्त पालीवाल की एक कविता
नसीहत
जब तक पेड़ है
छांव तो रहेगी
पलेगी, कहेगी —
धूप से
जितना तमतमाओगी
मुझमें निखार उतना
पाओगी
खिलो, पर तमतमाओ मत
डाकिया लाएगा तब
प्यार भरा खत ।
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रविदत्त पालीवाल की एक कविता
नसीहत
जब तक पेड़ है
छांव तो रहेगी
पलेगी, कहेगी —
धूप से
जितना तमतमाओगी
मुझमें निखार उतना
पाओगी
खिलो, पर तमतमाओ मत
डाकिया लाएगा तब
प्यार भरा खत ।
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बिना श्रेणी में प्रकाशित किया गया
bahut hi achhee kavitaa . padh kar sukhad anubhooti huee .
By: ambalika nag on अप्रैल 18, 2007
at 7:41 पूर्वाह्न
सुन्दर रचना ।
By: अफ़लातून on अप्रैल 18, 2007
at 8:22 पूर्वाह्न
बहुत अच्छा
By: प्रत्यक्षा on अप्रैल 18, 2007
at 9:07 पूर्वाह्न
बढ़िया कविता
By: reetesh gupta on अप्रैल 18, 2007
at 12:19 अपराह्न
वो कहते हैं न कि जितना तपाओगे उतना खरा होगा – सोना हो या व्यक्तित्व.
पर अब अधेड़ होने पर धूप चुभती है. इसपर भी कोई कविता है प्रियंकर जी?
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on अप्रैल 18, 2007
at 2:59 अपराह्न
आपने अच्छा लिखा है । ।
घुघूती बासूती
By: ghughutibasuti on अप्रैल 18, 2007
at 3:44 अपराह्न