विजय गौड़ की एक कविता
सोचो थोड़ी देर
आखिर कब तक
सरकारों का बदल जाना
मौसम के बदल जाने की तरह
नहीं रहेगा याद
कब तक यह कहते रहेंगे
इस बार गर्मी बड़ी तीखी है
बारिश भी हुई इस बार ज्यादा
और ठंड भी पड़ी पहले से अधिक ।
*****************
( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
कहीं गरज के साथ छीटें भी ।
By: अफ़लातून on अप्रैल 20, 2007
at 8:00 पूर्वाह्न