युवा कवि निशांत की एक कविता
उस रात
उनके झगड़े के बीच
एक मुर्गी गवाह थी
वे लड़के कहीं से उठा लाए थे दालचीनी
जिसकी घिसी हुई थी पीठ
कहीं से लाए थे हल्दी
जो पीली पड़ चुकी थी
लहसुन सफ़ेद हो गया था सूखकर
उनके बालों की तरह
उस रात जमकर वे एक-दूसरे पर बरसे
जमकर खाया जमकर पिया
और जमकर नाचे
उस रात जमकर उन्होंने ज़िन्दगी को जिया
स्मृति में बसी एक रात की तरह
और अलविदा हुए जैसे अलविदा होती हैं स्मृतियां
उस रात काले हो चुके थे उनके सफ़ेद बाल
जैसे काला हो जाता है विश्वास
अक्सर रातों में
और सूर्य की रौशनी में
वे नहीं देखना चाहते थे एक-दूसरे के चेहरे
वे अलविदा हुए
स्मृति में बसी उस रात की तरह
और उनके झगड़े के बीच
एक मुर्गी गवाह थी ।
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
जीवन का गूढ अर्थ कहती है कविता… सत्य है कई बार अंधेरो में जिन्दगी का अर्थ रोशनी से ज्यादा सार्थक होता है..
By: manya on मई 8, 2007
at 6:01 पूर्वाह्न
जीवन जीने को क्या चाहिये? गरम मसाला, लहसुन, मुर्गी, झगड़ा, जवानी और बस!
क्या प्रियंकर जी, इनमें से हमारे पास कुछ भी नहीं है और जीवन के अर्थ खोज रहे है!
By: Gyandutt Pandey on मई 10, 2007
at 9:26 पूर्वाह्न