Posted by: PRIYANKAR | मई 8, 2007

उनके झगड़े के बीच एक मुर्गी गवाह थी

युवा कवि निशांत की एक कविता

 

 

उस रात

 

उनके झगड़े के बीच

एक मुर्गी गवाह थी

 

वे लड़के कहीं से उठा लाए थे दालचीनी

जिसकी घिसी हुई थी पीठ

 

कहीं से लाए थे हल्दी

जो पीली पड़ चुकी थी

 

लहसुन सफ़ेद हो गया था सूखकर

उनके बालों की तरह

 

उस रात जमकर वे एक-दूसरे पर बरसे

जमकर खाया जमकर पिया

और जमकर नाचे

 

उस रात जमकर उन्होंने ज़िन्दगी को जिया

स्मृति में बसी एक रात की तरह

और अलविदा हुए जैसे अलविदा होती हैं स्मृतियां

 

उस रात काले हो चुके थे उनके सफ़ेद बाल

जैसे काला हो जाता है विश्वास

अक्सर रातों में

और सूर्य की रौशनी में

वे नहीं देखना चाहते थे एक-दूसरे के चेहरे

 

वे अलविदा हुए

स्मृति में बसी उस रात की तरह

और उनके झगड़े के बीच

एक मुर्गी गवाह थी ।

 

*************

 

( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )


Responses

  1. जीवन का गूढ अर्थ कहती है कविता… सत्य है कई बार अंधेरो में जिन्दगी का अर्थ रोशनी से ज्यादा सार्थक होता है..

  2. जीवन जीने को क्या चाहिये? गरम मसाला, लहसुन, मुर्गी, झगड़ा, जवानी और बस!

    क्या प्रियंकर जी, इनमें से हमारे पास कुछ भी नहीं है और जीवन के अर्थ खोज रहे है!


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