Posted by: PRIYANKAR | जून 6, 2007

विवेक ध्रुवतारा है ….

 Bhavani bhai

भवानीप्रसाद मिश्र की एक कविता

 

 

सिद्धांत और विवेक

 

सिद्धांतों ने मेरे विवेक को

कुतरने की कोशिश की

 

इसलिए मैंने सिद्धांतों के दांतों को

जरा और पास से परखा

 

सिद्धांत तब मुझे कुरूप दिखे

 

मैंने देखा कि उन्हें मेरे भीतर

किसी ने बड़े कौशल के साथ

धंसा दिया है चुपचाप

जिनकी मेरे विवेक से

कोई संगति नहीं है

 

उन्हें मेरे विवेक में बनाकर घोंसले

यों बसा दिया है

कि अब वे वहां अंडे देते हैं

और बढाते चलते हैं

अपना परिवार

 

मैं चौकन्ना हो गया हूं

और सिद्धांत मेरे सामने जब

पेश किया जाता है कोई

तो मैं उसके चेहरे को नहीं देखता

 

उससे कहता हूं मुंह खोलो

और अपने दांत दिखाओ

 

तुम्हारे दांतों में

खून तो नहीं लगा है

इसके या उसके विवेक का

 

किसी एक का भी विवेक

हज़ारों लोगों के तय किये हुए

सिद्धांत से ज्यादा पवित्र है

प्यारा है

 

विवेक ध्रुवतारा है

सिद्धांत एक लकीर पिटी हुई

मैं सिद्धांतॊं की तरफ़

चौकन्ना हो गया हूं

 

नियमवादियों ने मुझे

भवानीप्रसाद मिश्र तय किया था

अपनी बेटी के बल पर मैं

मन्ना हो गया हूं ।

 

*************


Responses

  1. पढ़कर अच्छा लगा । टिप्पणी करने की मेरी क्षमता नहीं है ।
    घुघूती बासूती

  2. यह क्या है? सिद्धांत रोड़े हैं? शायद हां. अगर उनपर मनन न किया जाये तो कुछ समय बाद वे अतीत का सत्य और वर्तमान का अविवेक बन कर सामने आते हैं. सिद्धांतों का समय-समय पर मंथन/वलिडेशन जरूरी है.

  3. अपनी बेटी के बल पर मैं

    मन्ना हो गया हूं ।

    ——-

    कृपया स्पष्ट करें

  4. bahut achchha..


एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

श्रेणी

%d bloggers like this: