भगवत रावत द्वारा रचित एक समूह गीत
हमने चलती चक्की देखी
हमने चलती चक्की देखी
हमने सब कुछ पिसते देखा
हमने चूल्हे बुझते देखे
हमने सब कुछ जलते देखा
हमने देखी पीर पराई
हमने देखी फटी बिवाई
हमने सब कुछ रखा ताक पर
हमने ली लम्बी जमुहाई
हमने देखीं सूखी आंखें
हमने सब कुछ बहते देखा
कोरे हड्डी के ढांचों से
हमने तेल निकलते देखा
हमने धोका ज्ञान पुराना
अपने मन का कहना माना
पहले अपनी जेब संभाली
फ़िर दी सारे जग को गाली
हमने अपना फ़र्ज़ निभाया
राष्ट्र-पर्व पर गाना गाया
हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
आपस में सब भाई-भाई ।
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( ‘हमने उनके डर देखे ‘ काव्य संकलन से साभार )
प्रियंकर जी, बहुत बहुत बहुत धन्यवाद.
आप हमेशा दिल भिगो जाते हैं.
By: मैथिली on जून 19, 2007
at 7:27 पूर्वाह्न
अच्छी लगी !
By: प्रत्यक्षा on जून 19, 2007
at 8:30 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया!!!
By: Sanjeet Tripathi on जून 19, 2007
at 10:13 पूर्वाह्न
वाह वाह
By: yunus on जून 19, 2007
at 4:55 अपराह्न
अति उत्तम
By: अभिनव on जून 20, 2007
at 5:15 पूर्वाह्न
उत्तम
By: अभिनव on जून 20, 2007
at 5:15 पूर्वाह्न
ये वर्डप्रेस कुछ टिप्पणियों को गड़बड़ कर रहा है, आपकी पोस्ट अति उत्तम रही प्रियंकर जी।
By: अभिनव on जून 20, 2007
at 5:17 पूर्वाह्न
for u
By: alka on जून 21, 2007
at 4:03 पूर्वाह्न
कविता बहुत अच्छी लगी ….धन्यवाद
By: reeteshgupta on जून 21, 2007
at 7:38 अपराह्न