Posted by: PRIYANKAR | जून 28, 2007

अबके

( अभी इसी छब्बीस को यानी परसों, भाई अनूप शुक्ल का हमारे घर  अर्थात लेक रोड स्थित सीएसआईआर के फ़्लैट नम्बर ४३ में आना हुआ . उनसे मिलना हुआ और ढेर सारी बातें हुईं . उनकी मिलनसारिता  और पारस्परिकता  ने  मन पर विशेष प्रभाव छोड़ा .  अनूप भाई के साथ हुई उस बैठक पर यूं तो आपका एक पोस्ट का हक बनता है ,पर फ़िलवक्त  भवानी भाई की यह कविता प्रस्तुत है  )

Bhavani bhai

अबके

 

मुझे पंछी बनाना अबके

या मछली

या कली

 

और बनाना ही हो आदमी

तो किसी ऐसे ग्रह पर

जहां यहां से बेहतर आदमी हो

 

कमी और चाहे जिस तरह की हो

पारस्परिकता की न हो !

 

*****


Responses

  1. बहुत खूब प्रियंकरभाई, आभार ।

  2. जब ऐसी कविता उभर कर आई है, तो मुलाकात तो जबरदस्त रही होगी, प्रियंकर भाई. जरा विस्तार में बताये. आपके जैसे लेखन में माहिर व्यक्ति को इस तरह तो नहीं छोड़ा जा सकता न!! 🙂 इन्तजार करें??

  3. अच्छी कविता है! 🙂

  4. प्रियंकर जी CSIR से हमें बहुत लगाव है, ये लेक रोड पर सी एस आइ आर के फ़्लैट किस शहर मे हैं?

  5. ” और बनाना ही हो आदमी

    तो किसी ऐसे ग्रह पर

    जहां यहां से बेहतर आदमी हो”
    —————————-

    स्वर्ग-नर्क सब यहीं है.
    लेख सुकुलजी ने लिखा ही दिया है. आपका लेख प्रतीक्षित है. कविता सदा की तरह आप बहुत अच्छी लाते हैं. बस आपकी कलम मिल जाती तो….. 🙂


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