( अभी इसी छब्बीस को यानी परसों, भाई अनूप शुक्ल का हमारे घर अर्थात लेक रोड स्थित सीएसआईआर के फ़्लैट नम्बर ४३ में आना हुआ . उनसे मिलना हुआ और ढेर सारी बातें हुईं . उनकी मिलनसारिता और पारस्परिकता ने मन पर विशेष प्रभाव छोड़ा . अनूप भाई के साथ हुई उस बैठक पर यूं तो आपका एक पोस्ट का हक बनता है ,पर फ़िलवक्त भवानी भाई की यह कविता प्रस्तुत है )
अबके
मुझे पंछी बनाना अबके
या मछली
या कली
और बनाना ही हो आदमी
तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहां यहां से बेहतर आदमी हो
कमी और चाहे जिस तरह की हो
पारस्परिकता की न हो !
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बहुत खूब प्रियंकरभाई, आभार ।
By: अफ़लातून on जून 28, 2007
at 4:40 अपराह्न
जब ऐसी कविता उभर कर आई है, तो मुलाकात तो जबरदस्त रही होगी, प्रियंकर भाई. जरा विस्तार में बताये. आपके जैसे लेखन में माहिर व्यक्ति को इस तरह तो नहीं छोड़ा जा सकता न!! 🙂 इन्तजार करें??
By: समीर लाल on जून 29, 2007
at 1:07 पूर्वाह्न
अच्छी कविता है! 🙂
By: अनूप शुक्ल on जून 29, 2007
at 2:20 पूर्वाह्न
प्रियंकर जी CSIR से हमें बहुत लगाव है, ये लेक रोड पर सी एस आइ आर के फ़्लैट किस शहर मे हैं?
By: राम चन्द्र मिश्र on जून 29, 2007
at 4:08 अपराह्न
” और बनाना ही हो आदमी
तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहां यहां से बेहतर आदमी हो”
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स्वर्ग-नर्क सब यहीं है.
लेख सुकुलजी ने लिखा ही दिया है. आपका लेख प्रतीक्षित है. कविता सदा की तरह आप बहुत अच्छी लाते हैं. बस आपकी कलम मिल जाती तो….. 🙂
By: Gyandutt Pandey on जुलाई 4, 2007
at 6:28 पूर्वाह्न