ज्योतिर्मय दास की एक बांग्ला कविता
नदी के आगे सिजदा
नदी से हमें कुछ सीख लेनी थी
देखा जाय तो यह अटूट प्रवहमयता ही जीवन है
दोनों किनारे नए अन्न की धारावाहिकता
जीवन को आगे बढने की — प्रवाहित होने की मंत्रणा देती है
एक महान जीवन के प्रवाहित होने से
जमा हुआ अंधकार समाप्त होगा
बह जाएंगे अज्ञान के घास-फूस …
नदी का अर्थ है नवीनता और धारावाहिकता
और नवीनता का दूसरा नाम है जीवन
इसलिए फ़ुरसत हो तो
नदी के आगे सिजदा करना बेहतर है !
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( बांग्ला लघु पत्रिका हवा ४९ के पोस्ट-मॉडर्न बांग्ला पोएट्री पर केन्द्रित अंक ‘अधुनान्तिक बांग्ला कविता’ से साभार )
अनुवाद किसका है। अच्छी कविता है ।
By: बोधिसत्व on जुलाई 19, 2007
at 7:57 पूर्वाह्न
अनुवाद कवि का है . उससे थोड़ी-बहुत छेड़खानी खाकसार ने की है .
By: प्रियंकर on जुलाई 19, 2007
at 9:42 पूर्वाह्न
प्रियंकर जी, अनुवादित रचना के भाव बहुत सुन्दर है_नदी से हमें कुछ सीख लेनी थी
देखा जाय तो यह अटूट प्रवहमयता ही जीवन है
दोनों किनारे नए अन्न की धारावाहिकता
जीवन को आगे बढने की – प्रवाहित होने की मंत्रणा देती है
By: paramjitbali on जुलाई 19, 2007
at 11:24 पूर्वाह्न
कविता अच्छी है और अनुवाद भी जीवंत.
By: Isht Deo Sankrityaayan on जुलाई 19, 2007
at 12:55 अपराह्न
त्रिलोचन ने गजलें और चतुश्पदियाँ भी ख़ूब लिखी हैं. हो सके तो कुछ उनमें से भी लाएं .
By: Isht Deo Sankrityaayan on जुलाई 19, 2007
at 12:59 अपराह्न
‘खाकसार’ जी की अनुवाद से छेड़खानी अच्छी है।
By: अनूप शुक्ल on जुलाई 19, 2007
at 5:40 अपराह्न
बहुत सुन्दर अनुवाद लगा. ओरिजिनल कविता तो पढ़ी नहीं है.
By: समीर लाल on जुलाई 19, 2007
at 6:34 अपराह्न