विनोद कुमार शुक्ल की कविता – ॥2॥
जब बाढ़ आती है
तो टीले पर बसा घर भी
डूब जाने को होता है
पास, पड़ोस भी रह रहा है
मैं घर को इस समय धाम कहता हूं
और ईश्वर की प्रार्थना में नहीं
एक पड़ोसी की प्रार्थना में
अपनी बसावट में आस्तिक हो रहा हूं
कि किसी अंतिम पड़ोस से
एक पड़ोसी बहुत दूर से
सबको उबारने
एक डोंगी लेकर चल पड़ा है
घर के ऊपर चढाई पर
मंदिर की तरह एक और पड़ोसी का घर है
घर में दुख की बाढ़ आती है ।
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
प्रेषित रचना बहुत बढिया है।एक सजीव चित्रण है।
By: paramjitbali on जुलाई 22, 2007
at 8:14 पूर्वाह्न
बढ़िया!!
आभार!!
By: Sanjeet Tripathi on जुलाई 22, 2007
at 1:24 अपराह्न
इस रचना को पढ़ना एक अलग अनुभूति है. गहरी रचना.
By: समीर लाल on जुलाई 22, 2007
at 3:34 अपराह्न
ये किसकी तस्वीर लगा दी. ये सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार, उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल की तस्वीर नहीं है.
By: एस. गोपाल on सितम्बर 11, 2008
at 9:15 पूर्वाह्न
भैये गोपाल बाबू पिनक में हो क्या ? कहां की तस्वीर और कैसी तस्वीर ? कोई दिव्य-दृष्टि पाई है क्या ?
By: Priyankar on सितम्बर 11, 2008
at 2:10 अपराह्न
किसकी तस्वीर है भाई।
By: S. Gopal on अक्टूबर 13, 2010
at 11:53 पूर्वाह्न