{ कल इस बांग्ला कविता का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया था,प्रस्तुत है इसी कविता का एक और अनुवाद ताकि आप दोनों अनुवादों की तुलना कर सकें. कृपया बताएं कि आपको कौन-सा अनुवाद अधिक पसंद आया और क्यों . अनुवादक-पुनरीक्षक वही हैं }
अमिताभ गुप्त की एक बांग्ला कविता
( अनुवाद: सुमना मजूमदार; पुनरीक्षण: प्रियंकर )
न देने के लिये
तुम पर मायावी देह का
सौन्दर्य निछावर कर दूंगा
तुम्हारे आंचल में छोड़ जाऊंगा
जादू भरे तेजस्वी प्राण
कुहासे को चीर कर आई भोर
नन्हीं बच्ची की तरह
छोटे-छोटे हाथों से
इस भोर ने
नदी को आगोश में ले लिया
– पूरे बंगाल की भोर ने
इस भोर की तरह
लजीला करुण प्रेम
छोड़ जाऊंगा मैं
तुम्हारी भावनाओं में
– उसके बाद सूरज बड़ा होगा
एक रोज़ भोर खत्म नहीं होगी
एक रोज़ सूरज नहीं ढलेगा
एक रोज़ बिटिया के दिल में
खिल उठेगी आकाश की हंसी ।
**********
( काव्य संकलन ‘कल्पना एबंग एकाकीर किंबदंती’ से साभार )
muJe ye jyaadaa acchi lagi
By: arun on जुलाई 25, 2007
at 6:18 पूर्वाह्न
भाई
मैंने बनलता सेन के करीब 10 या 12 अनुवाद पढ़े हैं, लेकिन जो
असर प्रयाग शुक्ल के अनुवाद का मुझ पर रहा वह बाद के अनुवादों का कभी
नहीं पड़ पाया। यहाँ भी पहला अनुवाद अपना काम कर गया था।
By: बोधिसत्व on जुलाई 25, 2007
at 8:40 पूर्वाह्न
बहुत अच्छी रचना है।
By: paramjitbali on जुलाई 25, 2007
at 4:18 अपराह्न
@अरुण : चलिए दूसरा अनुवाद देना आपकी पसंद के जरिये सार्थक हुआ .
@बोधिसत्व : प्रयाग जी ने अपना समूचा बचपन कोलकाता में बिताया है और वे बांग्ला भाषा के ‘डेलीकेट नूआन्सेज़’– इस भाषा के अर्थ,रंग या भावों की बारीकियां — भली-भांति समझ और हिंदी में अंतरित कर पाते हैं . उनका गीतांजलि का हिंदी अनुवाद भी अब तक का सर्वश्रेष्ठ अनुवाद है .
@परमजीत बाली : धन्यवाद!
By: प्रियंकर on अगस्त 1, 2007
at 5:28 पूर्वाह्न