Posted by: PRIYANKAR | अगस्त 1, 2007

प्रियंकर की एक कविता

 

दोना पावला की एक सांझ का अकेलापन

 

सागर
असीम है
अगाध है
मन को
भाता है
अपरिचय का सागर
दारुण है
दाहक है
मन अकुलाता है

कोई स्पर्श नहीं
सांत्वना का
कंधे पर नहीं
कोई विश्वासी हाथ
परिचय की नहीं
कोई स्निग्धता
नहीं कोई
स्नेही स्वजन साथ

एकाकीपन का
साथी है तो सागर —
हरहराता हुआ
आता है मेरे पास
कराता है
निकटता का अहसास
पूछता है
मेरे छोटे सुख
पूछता है
मेरे दारुण दु:ख
मेरी ही भाषा में

 

एकाएक
जी भर आता है
सागर
आंखों में लहराता है ।

 

 ……..

 


Responses

  1. सागर की अथाह जलराशि ,उससे उत्पन्न निस्सारता की भावना
    एकाकीपन को विस्तारित करती है । ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी –
    एकाएक
    जी भर आता है
    सागर
    आंखों में लहराता है ।

  2. प्रियंकरजी , अद्भुत !हार्दिक बधाई।

  3. सुन्दर.. संगीतमय..

  4. अच्छा है प्रभु अच्छा है। यह हुई न बात

  5. bahut badhiya…. ise padh kar mujhe apna ekaki honeymoon yaad aa gaya… jab mai akela dona paula me baitha tha aur Ruchi Noida me 🙂

  6. बहुत सुन्दर, जाने क्यों ये कविता अपनी अपनी सी लग रही है। ये कविता एकदम मेरे ऊपर फिट हो रही है, कैसे? सुनो….

    जब मै कुवैत मे नया नया आया था, फैमिली तब इन्डिया मे थी, अक्सर सांझ ढले, समुन्दर किनारे चला जाता था। और सागर की अठखेलिया करती हुई लहरों मे अपनो के अक्स उभरते हुए देखता था। आने वाल हर लहर लगता था मेरे देश का कोई सन्देशा लाई है, फिर अचानक जब वो लहर वापस लौट जाती तो दिल बैठ जाता, लेकिन फिर अगले ही पल दूसरी लहर आती और ये सिलसिला चलता रहता। अपना जीवन भी तो कुछ ऐसा ही, समुन्दर की लहरों जैसा…..

  7. सागर के सामने खड़े हैं.. जबकि हमारे आगे यहां नदी-नाला तक नहीं है.. और फिर भी दुखी हो रहे हैं?

  8. “एकाएक
    जी भर आता है
    सागर
    आंखों में लहराता है ।”

    सच, अनुभूति के लिये सागर थोड़े चाहिये. आंखें बहुत हैं. “तुम तो समन्दर की बात करते हो, लोग आंखों में ड़ूब जाते हैं.”


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