मामूली कविता
रमन मिश्र के लिए
एक मामूली कविता लिखने का
मज़ा ही कुछ और है एक ऐसी कविता
जो अंगूठे के बारे में हो या
अचानक शुरू हो गई शाम के बारे में
या किसी स्टेशन के बारे में जिससे
होकर आप कभी गुज़रे थे या
एक ऐसे बड़े-से गेट के लोहे के बारे में
जिसको छूकर ये लगता था कि
जीवन में नहीं बची है कोमलता
एक मामूली कविता उन
दोस्तों के बारे में भी लिखी जा सकती है
जो चाय का इंतज़ार करते हुए बैठे होते हैं
एक दूसरे को देखते हुए
और ये सोचते हुए कि मृत्यु
हम सबके लिए भी है
मामूली कविता में समकालीनता
के किसी कोने में पड़े रहने का
अनोखापन होता है हाशिये पर
बने रहने का चयन
केन्द्र में होने की
निर्लज्जता से निजात पाने
की हिकमत कि जैसे
किसी ने दरवाजे पर खाट
डालने का फ़ैसला किया हो ज्यादा
आसमान और ज्यादा हवा के लिए
घर की सुरक्षा से ऊबकर
यह डायरी
लिखने जैसा होता है — शैलीविहीन
कुछ मामूली वाक्य कि जिनका कर्ता
लापता हो और कुछ क्रियाओं से ही
चला लिया गया हो काम
एक मामूली कविता लिखने का मज़ा
इसलिए भी है कि वो किसी
पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं
बनेगी और न ही अमर बनाने में निभाएगी कोई
भूमिका उस पर पुरस्कार भी नहीं दे पाएगा
ताकतवर साहित्यिकों का कोई गिरोह ।
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
kavita pyaree hai.lekin , maaf karenge, antim ansh gairjarooree nahin hai kya? kavita kee samoochee vyanjakata ke khilaf ek ghisa-pita nishakrash pesh kartee hui?
By: awadhar on अगस्त 8, 2007
at 5:46 पूर्वाह्न
मामूली कविता के इस रिरियाते दंभ का क्या करें कि देखो, महानता को खारिज करके कैसे महान बना जाता है!
By: chandrabhushan on अगस्त 8, 2007
at 8:08 पूर्वाह्न
प्रसंगवश एक बात कहूंगा.. हिंदी के कवि (महा कहें तो कवि को डकार ठीक से आएगी) को जिस दिन देव व देवी की जगह मामूलीराम की संगत का पहचाना जाने लगा, ज्यादा संभावना है कविराज को एकसौतीन का बुखार जकड़ ले.. कविता-सविता में भले कवि मामूली-ताम्बुली पर बीच-बीच में हाथ फेरता रहे..
By: pramos on अगस्त 8, 2007
at 2:53 अपराह्न
मामूली लेकिन अच्छी कविता. देवी प्रसाद मिश्र की एक कविता अखबारों पर है. आपकी नजर पड़े तो कभी पढ़वाईये.
By: संजय तिवारी on अगस्त 8, 2007
at 3:33 अपराह्न
अच्छा लगा यह कविता पढ़कर!
By: अनूप शुक्ल on अगस्त 8, 2007
at 6:00 अपराह्न