Posted by: PRIYANKAR | अगस्त 8, 2007

देवीप्रसाद मिश्र की एक कविता

 

मामूली कविता

रमन मिश्र के लिए

 

एक मामूली कविता लिखने का

मज़ा ही कुछ और है एक ऐसी कविता

जो अंगूठे के बारे में हो या

अचानक शुरू हो गई शाम के बारे में

या किसी स्टेशन के बारे में जिससे

होकर आप कभी गुज़रे थे या

एक ऐसे बड़े-से गेट के लोहे के बारे में

जिसको छूकर ये लगता था कि

जीवन में नहीं बची है कोमलता

 

एक मामूली कविता उन

दोस्तों के बारे में भी लिखी जा सकती है

जो चाय का इंतज़ार करते हुए बैठे होते हैं

एक दूसरे को देखते हुए

और ये सोचते हुए कि मृत्यु

हम सबके लिए भी है

 

मामूली कविता में समकालीनता

के किसी कोने में पड़े रहने का

अनोखापन होता है हाशिये पर

बने रहने का चयन

केन्द्र में होने की

निर्लज्जता से निजात पाने

की हिकमत कि जैसे

किसी ने दरवाजे पर खाट

डालने का फ़ैसला किया हो ज्यादा

आसमान और ज्यादा हवा के लिए

घर की सुरक्षा से ऊबकर

 

यह डायरी

लिखने जैसा होता है —   शैलीविहीन

कुछ मामूली वाक्य कि जिनका कर्ता

लापता हो और कुछ क्रियाओं से ही

चला लिया गया हो काम

 

एक मामूली कविता लिखने का मज़ा

इसलिए भी है कि वो किसी

पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं

बनेगी और न ही अमर बनाने में निभाएगी कोई

भूमिका उस पर पुरस्कार भी नहीं दे पाएगा

ताकतवर साहित्यिकों का कोई गिरोह ।

 

***********

 

( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )

 

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Responses

  1. kavita pyaree hai.lekin , maaf karenge, antim ansh gairjarooree nahin hai kya? kavita kee samoochee vyanjakata ke khilaf ek ghisa-pita nishakrash pesh kartee hui?

  2. मामूली कविता के इस रिरियाते दंभ का क्या करें कि देखो, महानता को खारिज करके कैसे महान बना जाता है!

  3. प्रसंगवश एक बात कहूंगा.. हिंदी के कवि (महा कहें तो कवि को डकार ठीक से आएगी) को जिस दिन देव व देवी की जगह मामूलीराम की संगत का पहचाना जाने लगा, ज्‍यादा संभावना है कविराज को एकसौतीन का बुखार जकड़ ले.. कविता-सविता में भले कवि मामूली-ताम्‍बुली पर बीच-बीच में हाथ फेरता रहे..

  4. मामूली लेकिन अच्छी कविता. देवी प्रसाद मिश्र की एक कविता अखबारों पर है. आपकी नजर पड़े तो कभी पढ़वाईये.

  5. अच्छा लगा यह कविता पढ़कर!


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