कोलकाता
17-08-2007
साथियो,
‘अनहद नाद’ ने कल यानी 16 अगस्त 2007 को अपना पहला साल पूरा कर लिया . कुछ गद्य भी लिखा गया पर मूलतः यह चिट्ठा कविताओं पर ही केन्द्रित रहा . यद्यपि इसमें सभी भाषाओं की कविताएं देने का लक्ष्य रखा गया था पर बांग्ला से अनूदित कुछ कविताओं को छोड़ दें तो यह चिट्ठा ‘अनहद नाद’ प्रमुखतः हिंदी कविताओं को ही समर्पित रहा . यह इसकी विशेषता भी रही और सीमा भी . विशिष्टता बुरी चीज़ नहीं है पर बड़ा लक्ष्य हासिल करने के लिए सीमाओं के पार नए क्षितिज खोजने होते हैं .
इस एक वर्ष में ‘अनहद नाद’ पर कुल 108 पोस्ट प्रेषित की गईं और यह चिट्ठा आपको विभिन्न कवियों की सौ से अधिक कविताएं पढवाने में सफल रहा . जिनमें 15 कविताएं इस चिट्ठाकार की भी थीं . बारह महीने में कुल 14430 लोग इस चिट्ठे पर आये . यह बहुत बड़ी संख्या तो नहीं है पर हिंदी चिट्ठों के ट्रैफ़िक और तिस पर कविता, विशेषकर हिन्दी कविता में पाठकों की घटती रुचि को देखते हुए इसे बहुत निराशाजनक आंकड़ा भी नहीं कहा जा सकता . कुल 584 पाठकों ने टिप्पणी देकर चिट्ठाकार का उत्साह बढाया . जिनके प्रति आभार प्रकट करना चिट्ठाकार की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है . एक दिन में चिट्ठे पर आने वालों की सर्वाधिक संख्या 299 रही . ऐसा तो कई बार हुआ कि एक दिन में 250 या उससे अधिक व्यक्ति चिट्ठे पर आए .
भगवत रावत, नरेश सक्सेना, कुंवर नारायण, राजकिशोर, लीलाधर जगूड़ी, मानिक बच्छावत, केदारनाथ सिंह, सुनील गंगोपाध्याय, महेन्द्र सिंह पूनिया, संजय कुंदन, गिरिधर राठी, जितेन्द्र श्रीवास्तव, नीलेश रघुवंशी, विजेन्द्र, जगन्नाथ आज़ाद, मनमोहन, प्रयाग शुक्ल, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, सुंदरचंद ठाकुर, अरुण कमल, कैलाश सेंगर, वीरेन्द्रप्रसाद सिंह, विष्णु नागर, रविदत्त पालीवाल, विजय गौड़, विष्णुचंद्र शर्मा, रंजीत कुमार रॉय, अनूप मुखर्जी, निशांत, शुभा, अल्पना मिश्रा, राजीव शुक्ल, मनीषा झा, कीर्ति चौधरी, गीत चतुर्वेदी, उदय प्रकाश, भवानीप्रसाद मिश्र, ऋतुराज, राजेन्द्र उपाध्याय, पवन मुखोपाध्याय, राग तेलंग, श्यामल शील, दिनेश कुशवाह, अष्टभुजा शुक्ल, खलील जिब्रान, बोधिसत्व, ज्योतिर्मय दास, विनोद कुमार शुक्ल, विनय दुबे, अमिताभ गुप्त, योगेश अटल, देवीप्रसाद मिश्र, रति सक्सेना, अशोक वाजपेयी, इंदु जैन, बसंत त्रिपाठी, शहंशाह आलम, हरीश चंद्र पांडेय और प्रियंकर प्रमुख कवि हैं जिनकी कविताएं ‘अनहद नाद’ पर प्रेषित की गईं .
प्रस्तुत कविताओं में से अधिकांश कविताएं कोलकाता से प्रकाशित लघु पत्रिका समकालीन सृजन द्वारा प्रकाशित समकालीन हिंदी कविता पर केन्द्रित महत्वपूर्ण अंक ‘कविता इस समय’ से साभार ली गई हैं . संपादक मंडल का सदस्य होने के नाते मुझे इस अंक के सम्पादन से जुड़े रहने का अवसर मिला था .
प्रत्येक माह के हिसाब से वर्गीकरण इस प्रकार रहा :
अगस्त२००६ : आत्मा का राग(प्रियंकर), भगवत रावत की एक कविता(वे इसी पृथ्वी पर हैं), नरेश सक्सेना की कविता(घास), कुंवर नारायण(दीवारें), राज किशोर की एक कविता(अच्छा)
सितम्बर२००६ : प्रियंकर की एक कविता(प्रतीत्य समुत्पाद), लीलाधर जगूड़ी की एक कविता(मेरा ईश्वर), मानिक बच्छावत की कविताएं(पहचान व पृथ्वी), पुरस्कृत होंगे कवि मानिक बच्छावत
अक्टूबर२००६ :केदारनाथ सिंह की एक कविता(हिंदी के बारे में एक हिंदी कवि का बयान), प्रियंकर की एक कविता(सबसे बुरा दिन), प्रियंकर की एक प्रेम कविता(तुम मेरे मन का कुतुबनुमा हो), तमसो मा ज्योतिर्गमय
नवम्बर२००६ :किताबनामा/प्रियंकर(विजेन्द्र के काव्य-चित्र संकलन की समीक्षा-भाग १-२, साभार: वागर्थ), सुनील गंगोपाध्याय की एक कविता(सिर्फ़ कविता के लिए),महेन्द्र सिंह पूनिया की एक कविता(कमी)
दिसम्बर२००६ :संजय कुंदन की एक कविता(यमुना तट पर छठ), प्रियंकर की एक कविता(इक्कीसवीं सदी की रथयात्रा), राजकिशोर की एक गज़ल, प्रियंकर की एक कविता, साभार: जनसत्ता वार्षिकी(कहता है गुरु ग्यानी), प्रियंकर की एक कविता(जिसे तुम सपना कहती हो और मैं भविष्य)
जनवरी२००७ :कुंवर नारायण की एक कविता(जिस समय में),गिरधर राठी की एक कविता(दिल्लीनामा),जितेन्द्र श्रीवास्तव की एक कविता(लुंगी)
फरवरी२००७ :नीलेश रघुवंशी की एक कविता(जंगल और जड़), प्रियंकर की एक कविता(नंदिनी के लिए),विजेन्द्र की एक कविता(अच्छत धरती),बेजी आपके सवालों के जवाब हाज़िर हैं(प्रियंकर)
मार्च२००७ :जगन्नाथ आज़ाद की नज़्म : भारत के मुसलमां(१९४९), भगवत रावत की एक कविता(मेधा पाटकर),कुछ और : मनमोहन की एक कविता,इस पृष्ठ पर : प्रयाग शुक्ल की एक कविता,निराशा एक बेलगाम घोड़ी है:राजेश जोशी की एक कविता,त्वचा ही इन दिनों दिखती है चारों ओर:मंगलेश डबराल की एक कविता
अप्रैल२००७ :मौन रहे(प्रियंकर की एक कविता),मत हंसो पांचाली(प्रियंकर की एक कविता),इच्छा तो बहुत थी(अरुण कमल की एक कविता),औरत(कैलाश सेंगर की तीन कविताएं),अभिधान(वीरेन्द्रप्रसाद सिंह की एक कविता),मां सब कुछ कर सकती है(विष्णु नागर की एक कविता),जब तक पेड़ है(रविदत्त पालीवाल की एक कविता),सोचो थोड़ी देर(विजय गौड़ की एक कविता), सभ्यता का जहर(विष्णुचंद्र शर्मा की एक कविता),एक बांग्ला कविता(रंजीत कुमार रॉय)
मई२००७ : दो बांग्ला कविताएं(अनूप मुखर्जी),फूल कुछ नहीं बताएंगे(नरेश सक्सेना की एक कविता),उनके झगड़े के बीच एक मुर्गी गवाह थी(निशांत की एक कविता),बूढी औरत का एकांत(शुभा की एक कविता),समय की कमी थी बहुत(अल्पना मिश्रा की एक कविता),पढी हुई किताबें(राजीव कुमार शुक्ल),सत्य को लिया सत्य की तरह(मनीषा झा की एक कविता),केवल एक बात थी(कीर्ति चौधरी की एक कविता),कितनी ही पीड़ाएं हैं(गीत चतुर्वेदी की एक कविता),राजधानी में बैल:भाग १-६(उदयप्रकाश की कविता सीरीज़),असमंजस(भवानीप्रसाद मिश्र)
जून२००७ : स्त्रीवग्गो(ऋतुराज की एक कविता),चिट्ठियां रही हैं हमेशा मेरे घर में(राजेन्द्र उपाध्याय),आंखें(मंगलेश डबराल की एक कविता), विवेक ध्रुवतारा है(भवानीप्रसाद मिश्र की एक कविता),प्रियंकर की एक कविता(मेरा दुख),वृष्टि-छाया प्रदेश का कवि(प्रियंकर की एक कविता), हमने उनके घर देखे(भगवत रावत की एक कविता),रोटी और गुलाब(पवन मुखोपाध्याय की एक कविता),बरखास्त(मनमोहन की एक कविता), हमने चलती चक्की देखी(भगवत रावत का एक समूह गीत),नदियों को जोड़ने के पहले(रंजीत कुमार रॉय),हे गणनायक(राग तेलंग की एक कविता),चाहिए चाहिए चाहिए (श्यामल शील की एक बांग्ला कविता),अबके(भवानीप्रसाद मिश्र),तारों से भरा आसमान ऊपर(भवानी भाई)
जुलाई२००७ : अटपटा छंद(प्रियंकर की एक कविता),पूछती है मेरी बेटी(दिनेश कुशवाह),आना फ़ुरसतिया का(प्रियंकर),तिल का ताड़,झूलता झोपड़ा और सुनहला पहाड़(प्रियंकर),अष्टभुजा शुक्ल की एक कविता(जीवन वृत्तांत),दियना(भवानी भाई),वृक्ष वे कविताएं हैं(खलील जिब्रान का गद्य-काव्य),बोधिसत्व की एक कविता(त्रिलोचन),नदी के आगे सिजदा(ज्योतिर्मय दास की बांग्ला कविता),विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता(कोई अधूरा पूरा नहीं होता),एक पड़ोसी की प्रार्थना में(विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता),विनय दुबे की एक कविता(मैं तो कविता लिखता हूं),न देने के वास्ते/न देने के लिए(अमिताभ गुप्त की एक बांग्ला कविता),शिक्षक महोदय(अमिताभ गुप्त की एक बांग्ला कविता), कुंवर नारायण की एक कविता(कभी पाना मुझे),राजकिशोर की एक कविता(साथ),शुभा की एक कविता(एकालाप)
अगस्त२००७ :प्रियंकर की एक कविता(दोनापावला की एक सांझ का अकेलापन),कुंवर नारायण की एक कविता(उदासी के रंग),संग-साथ(प्रियंकर की एक कविता),उठो(भवानी भाई),पेड़(योगेश अटल),देवीप्रसाद मिश्र की एक कविता(मामूली कविता),अधबने मकानों में खेलते बच्चे(रति सक्सेना की एक कविता),अशोक वाजपेयी की एक कविता(विश्वास करना चाहता हूं),जानना ज़रूरी है(इंदु जैन की एक कविता),मैं एक ठहरे हुए पल में जी रहा हूं(बसंत त्रिपाठी की एक कविता),औरतों की जेब क्यों नहीं होती(राग तेलंग की एक कविता),कुम्हार अकेला शख्स होता है(शहंशाह आलम की एक कविता),हरीशचंद्र पाण्डेय की एक कविता
तो यह रहा गए साल का लेखा-जोखा . कृपया बताएं आपको इस चिट्ठे में क्या अच्छा लगा और क्या नागवार गुज़रा . वे कौन सी कविताएं थीं जिन्होंने आपके मन को छुआ . वे कौन से कवि हैं जो आपको ज्यादा भाए तथा वे कौन से कवि और कविताएं हैं जिन्हें आप इस चिट्ठे पर देखना चाहते थे पर न देख सके .
आशा है आप स्नेह-संबंध बनाए रखेंगे और ‘अनहद नाद’ पर पहले की तरह आते रहेंगे . ‘अनहद नाद’ को और बेहतर बनाने के लिए आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी .
शुभकामनाओं सहित,
आपका
प्रियंकर
हिन्दी चिट्ठालोक को उत्कृष्ट काव्य-बोध कराने वाले चिट्ठे अनहदनाद और चिट्ठेकार प्रिय प्रियंकर को नया साल मुबारक !
अनहदनाद ने आज एक साल पूरा किया है। अनहदनाद ने प्रतिक्रान्ति के इस दौर में हमें सचेत किया और सही दिशा में प्रेरित भी। बाँग्ला की श्रेष्ठ काव्य-रचनाओं के सुन्दर
काव्यानुवाद और उनकी खुद की सरल और प्रभावी रचनाओं के लिए भी प्रियंकर के प्रति आभार।
पूरा यक़ीन है कि यह क्रान्तिकारी रचनाधर्मिता पूरे उत्साह के साथ जारी रहेगी।
By: अफ़लातून on अगस्त 17, 2007
at 10:43 पूर्वाह्न
एक वर्ष में कुछ महीने मैने भी देखे हैं. कई बार पढ़ कर निकल गया हूं, कई बार सोच कर टिप्पणी की है और कई बार टिप्पणी स्वत: निकली है अंतरमन से.
यह चिठ्ठा मेरे अत्यधिक प्रिय साइट्स में से है. बहुत मानसिक खुराक देता है यह.
बधाई, प्रियंकर जी.
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on अगस्त 17, 2007
at 12:17 अपराह्न
प्रियंकर जी,
एक साल पूरा होने पर बधाई। सुलझे विचार और सहज लेखन आपकी विशेषता है। जब कभी पढ़ा, सीखने और समझने ही मिला है। हालांकि कमेंटाने का सुख नहीं लिया और दिया।
By: नीरज दीवान on अगस्त 17, 2007
at 12:24 अपराह्न
साल पूरा करने पर बधाई। यात्रा इसी तरह आगे बढ़े यही कामना
By: उन्मुक्त on अगस्त 17, 2007
at 12:38 अपराह्न
मुबारकां
By: अभय तिवारी on अगस्त 17, 2007
at 2:08 अपराह्न
बधाई! ‘अनहद नाद’ की गूंज इसी तरह निरंतर सुनाई देती रहे।
By: सृजन शिल्पी on अगस्त 17, 2007
at 2:10 अपराह्न
एक साल पूरा करने पर हार्दिक बधाई।
By: सागर चन्द नाहर on अगस्त 17, 2007
at 4:23 अपराह्न
एक साल से अनहद नाद कर रहे हैं और अच्छा छाप रहे हैं। बधाई। लगे रहें।
By: बोधिसत्व on अगस्त 17, 2007
at 4:32 अपराह्न
साल पूरा करने की बधाई।
गद्य भी लिखा करें।
By: नितिन बागला on अगस्त 17, 2007
at 6:47 अपराह्न
साल बीतने की बधाई जरूर ले लीजिए लेकिन अगले दस साल कहीं न जाने का वचन भी दीजिए.
By: संजय तिवारी on अगस्त 17, 2007
at 6:47 अपराह्न
पहली वर्षगाँठ की बधाई 🙂
By: Amit on अगस्त 17, 2007
at 8:01 अपराह्न
बधाई पहली सालगिरह पर, अनहद नाद यूँ ही जारी रहे। 🙂
By: श्रीश शर्मा on अगस्त 17, 2007
at 9:44 अपराह्न
प्रियँकर जी,
उत्कृष्ट काव्य संपदा प्रस्तुत करने का धैर्य और विश्वास “अनहद नाद” को एक संग्रहणीय जाल घर बना पाया है
-आपको १ वर्ष पूरा करने पर शुभ कामना और आगे के पथ के लिये प्रगति कामना
सस्नेह,
– लावण्या
By: लावण्या on अगस्त 17, 2007
at 10:09 अपराह्न
वाह,वाह बधाई। अनहद नाद के बहाने तमाम अच्छी कवितायें पढ़ीं। सबसे अच्छी कविता जो मुझे याद आती है वह आपकी ही कविता है- सूरज अचानक भेज देगा एक दिन रोशनी की हिसाब वाली है(सबसे बुरा दिन)। लेकिन आप अपने गद्य को मौका न देकर उसके साथ अन्याय कर रहे हैं। अब अन्याय बहुत हुआ। नियमित लिखें। गद्य और पद्य। फिर से एक बार धांसू सालगिरह की बधाई। रबड़ी रूपक ग्रहण करें। 🙂
By: अनूप शुक्ल on अगस्त 18, 2007
at 12:59 पूर्वाह्न
बधाई हो गुरू । जब से चिट्ठाकारी की दुनिया में आया हूं आपके अनहद नाद पर नियमित आना जाना होता है । आप जो काम कर रहे हैं वो अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है ।
बस इसी तरह ऊर्जा को बनाए रखिए । हमारी कुछ फरमाइशें आपकी ओर लंबित हैं । बन पड़े तो पूरी कर दीजिएगा ।
हैट्स ऑफ टू यू सर
By: yunus on अगस्त 18, 2007
at 11:50 पूर्वाह्न
हैप्पी बर्थडे!
By: pramos on अगस्त 18, 2007
at 3:16 अपराह्न
congrats, wising many many more wonderful years
By: nisha on अगस्त 20, 2007
at 4:54 पूर्वाह्न
@ अफ़लातून भाई ,ज्ञान जी,उन्मुक्त जी,नीरज,अभय,सृजनशिल्पी : आप सभी के उत्साहवर्धक शब्दों के लिए बहुत-बहुत आभार . यह कविता के लिए कठिन समय है, यह जानकर भी यदि अपनी धुन में लगा रहा तो उसकी पृष्ठभूमि में आप जैसे मित्रों-शुभचिंतकों का सम्बल ही था .
@ लावण्या जी,बोधिसत्व,अनूप,सागर,नितिन,संजय,अमित,श्रीश,यूनुस,प्रमोद : यह नाद बस किसी तरह जारी रहे इसका प्रयास भर कर रहा था . पता नहीं था मित्रों की कैसी प्रतिक्रिया होगी .पर आप लोगों के समर्थन ने साबित किया कि मानवता की मातृभाषा के रूप में कविता कठिन से कठिन समय में भी पढी जाती रहेगी .
@ निशा : शुभकामनाओं के लिए आभार!
@ अनूप भाई और नितिन : अब गद्य पर ध्यान दूंगा .
@ यूनुस : आपकी फ़रमाइश मेरे ध्यान में है . वे कविताएं जल्दी देने की कोशिश करूंगा .
सबसे ज्यादा आभार ज्ञान जी और अमित के प्रति ,क्योंकि ज्ञान जी कविता के या कविता से विमुख होने की घोषणा के बावजूद पुनः कविता की तराई में लौट आए हैं और अमित ने कहीं भी कभी कविता से किसी तरह का कोई जुड़ाव प्रदर्शित किया हो मेरे देखने में नहीं आया . पर इसके बावज़ूद अगर वह कविता के ब्लॉग की तरफ़ रुख करता है,भले ही बधाई देने के लिये, तो अमित और इस विधा दोनों के लिए लक्षण शुभ दिखाई देते हैं . बाकी लोग कविता से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं . उन्हें मैं कविता के अनूठे संसार का स्व-पंजीकृत नागरिक मानता हूं . आभार!
By: प्रियंकर on अगस्त 20, 2007
at 11:28 पूर्वाह्न
priyankar ji’ abhiwadan
mene yohi bhatakte hooea site tak saphar tay kiya. par rachnain dhoond nhi paya. kirpya mail kere ki kese padi /dekhi ja sakti hen. vijay gaur, dehradun e-mail vijaygaur31@rediffmail.com
By: vijay gaur on नवम्बर 4, 2007
at 4:53 अपराह्न
priyankar ji, abhi thodi der pahle kiya gaya mail radd sasamjhe kavitain bhi mil gayi hen. dhire dhire padoonga tab pratikirya likhoonga.
By: vijay gaur on नवम्बर 4, 2007
at 5:00 अपराह्न