दर्द
देखो शाम घर जाते बाप के कंधे पर
बच्चे की ऊब देखो
उसको तुम्हारी अंग्रेज़ी कह नहीं सकती
और मेरी हिंदी भी कह नहीं पाएगी
अगले साल ।
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दर्द
देखो शाम घर जाते बाप के कंधे पर
बच्चे की ऊब देखो
उसको तुम्हारी अंग्रेज़ी कह नहीं सकती
और मेरी हिंदी भी कह नहीं पाएगी
अगले साल ।
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कविताएं/Poems में प्रकाशित किया गया | टैग: रघुवीर सहाय
यह अंग्रेजी हिन्दी के बीच झूलता बचपन
अंतत:
एक बायें हाथ से लिखने वाले को
जबरन दायें हाथ का बनाये जाने की त्रासदी
झेलने जैसा
अभिशाप झेलता है!
By: ज्ञानदत पाण्डेय on सितम्बर 5, 2007
at 8:02 पूर्वाह्न
बढ़िया है!
By: दीपक जोक on सितम्बर 5, 2007
at 9:19 पूर्वाह्न
जी बहुत अच्छा। कितनी बात छिपी है इस कविता में
By: neeshooalld on सितम्बर 5, 2007
at 12:12 अपराह्न
एक पहेली मेरा जीवन
एक तेरी यह कविता है.
जीवन ही सब सिखलायेगा
जो पावन एक सरिता है.
–गहरे भाव!!
By: समीर लाल on सितम्बर 5, 2007
at 12:40 अपराह्न
बहुत अच्छी कविता पेश की आपने
धन्यवाद
By: atulkumaar on अक्टूबर 14, 2007
at 2:33 अपराह्न
you have written an very good poem. i want to comment in hindi but i don’t know typing of hindi. But well done this poem is touching my heart.
By: cg on नवम्बर 22, 2007
at 5:56 पूर्वाह्न