Posted by: PRIYANKAR | सितम्बर 10, 2007

प्रश्न

 

लीलाधर जगूड़ी 

लीलाधर जगूड़ी की एक कविता

 

प्रश्न

 

धर्म में भगवान होते हैं

या भगवानों के भी अपने कुछ धर्म ?

 

क्यों मरना पड़ता है

क्यों जन्म लेना पड़ता है भगवान को भी ?

क्या जड़ ही दीर्घायु होते हैं

 

अपने को और अधिक गुलाम बनाने के लिए

भगवान ही हमारा सर्वोच्च मालिक क्यों हो ?

जबकि जन्म हमने लिया,मरना हमें है

 

क्या हमारी समस्याएं ही उसके होने का आधार हैं ?

या मनुष्यों की तरह भगवान को भी वैविध्य पसंद है ?

अगर ऐसा है तो भगवान !

तेरा मनुष्य होना बहुत पसंद आया मुझे ।

 

*****

 

( काव्य संकलन ‘ईश्वर की अध्यक्षता में’ से साभार )

 


Responses

  1. प्रियंकर भाई
    आपको नहीं लगता कि कविता बिचारों में कहीं गुम गई है।

  2. “अगर ऐसा है तो भगवान !
    तेरा मनुष्य होना बहुत पसंद आया मुझे ।”

    क्या मनुष्य को ऐसे भगवान की जरूरत है जो उसके समान ही नश्वर है ??

    — शास्त्री जे सी फिलिप

    मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
    2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!

  3. यह कविता टिप्पणी में नहीं, बहस में ही निपट सकती है.

  4. सही कह रहे हैं आप।


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