लीलाधर जगूड़ी की एक कविता
एक बुढिया का इच्छागीत
जब मैं लगभग बच्ची थी
हवा कितनी अच्छी थी
घर से जब बाहर को आयी
लोहार ने मुझे दरांती दी
उससे मैंने घास काटी
गाय ने कहा दूध पी
दूध से मैंने, घी निकाला
उससे मैंने दिया जलाया
दीये पर एक पतंगा आया
उससे मैंने जलना सीखा
जलने में जो दर्द हुआ तो
उससे मेरे आंसू आये
आंसू का कुछ नहीं गढाया
गहने की परवाह नहीं थी
घास-पात पर जुगनू चमके
मन में मेरे भट्ठी थी
मैं जब घर के भीतर आयी
जुगनू-जुगनू लुभा रहा था
इतनी रात इकट्ठी थी ।
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आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा.
ऎसेही लिखेते रहिये.
क्यों न आप अपना ब्लोग ब्लोगअड्डा में शामिल कर के अपने विचार ऒंर लोगों तक पहुंचाते.
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.
By: Deepanjali on सितम्बर 13, 2007
at 12:25 अपराह्न
अच्छी कविता पढ़वाने के लिये शुक्रिया।
By: अनूप शुक्ल on सितम्बर 13, 2007
at 3:13 अपराह्न
सरल कविता पारा बेहद सुन्दर !
By: लावण्या on सितम्बर 13, 2007
at 3:54 अपराह्न
आभार मित्र. इस प्रस्तुति के लिये.
By: समीर लाल on सितम्बर 14, 2007
at 12:22 पूर्वाह्न
बहुत ख़ूब
By: दीपक श्रीवास्तव on सितम्बर 15, 2007
at 9:52 पूर्वाह्न