दुनिया की चिन्ता
छोटी सी दुनिया
बड़े-बड़े इलाके
हर इलाके के
बड़े-बड़े लड़ाके
हर लड़ाके की
बड़ी-बड़ी बन्दूकें
हर बन्दूक के बड़े-बड़े धड़ाके
सबको दुनिया की चिन्ता
सबसे दुनिया को चिन्ता ।
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( काव्य संकलन इन दिनों से साभार )
दुनिया की चिन्ता
छोटी सी दुनिया
बड़े-बड़े इलाके
हर इलाके के
बड़े-बड़े लड़ाके
हर लड़ाके की
बड़ी-बड़ी बन्दूकें
हर बन्दूक के बड़े-बड़े धड़ाके
सबको दुनिया की चिन्ता
सबसे दुनिया को चिन्ता ।
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( काव्य संकलन इन दिनों से साभार )
कविताएं/Poems में प्रकाशित किया गया | टैग: कुंवर नारायण
बढिया रचना प्रेषित की है।बधाई।
By: paramjitbali on अक्टूबर 29, 2007
at 12:51 अपराह्न
सबको दुनिया की चिन्ता-सबसे दुनिया को चिन्ता ।
-बेहतरीन प्रस्तुति.
By: समीर लाल on अक्टूबर 29, 2007
at 2:58 अपराह्न
बड़े धड़ाके वाली चिंता को रेखांकित करती अच्छी कविता….
बेहतर प्रस्तुति
By: बोधिसत्व on अक्टूबर 29, 2007
at 4:28 अपराह्न
सबको दुनियाँ की चिंता शायद नहीं है; सबसे दुनियाँ को चिंता जरूर है।
By: Gyandutt Pandey on अक्टूबर 30, 2007
at 3:17 पूर्वाह्न
“छोटी सी दुनिया
बड़े बड़े इलाके …”
और
“सबको दुनिया को चिँता
सबसे दुनिया को चिँता।”
इन पंक्तियोँ मेँ विरोधी बातोँ का व्यंग जबरदस्त चमक पैदा कर रही है। बहुत अच्छा लगा। कविता के लिए बधाइयाँ!
By: संदीप प्रसाद on अक्टूबर 7, 2010
at 6:54 अपराह्न