Posted by: PRIYANKAR | नवम्बर 1, 2007

शब्द जो शब्द भर नहीं हैं

Priyankar 

प्रियंकर की एक कविता

 

शब्द जो शब्द भर नहीं है

 

प्यार !
एक बहुउद्धृत शब्द !

यह निरा शब्द ही तो है
जैसे अंक हैं
गणित में ।
 
नहीं !
मैं शब्द के संगीत को
पा नहीं सका था
और अर्थ की सतहों के पार
जा नहीं सका था

शब्द जो बहता है
सदानीरा सा
शब्द जो मचलता है
लय है
शब्द जो अंकुर है
पराजय का
शब्द जो स्वयं ही
जय है

शब्द जो मधुमास को
पुकार लाते हैं
शब्द जो गंध की नदी से
पार आते हैं

शब्द जो  किसी साज से
बज सकें
शब्द जो किसी के होठों पर
सज सकें

शब्द जो दहकता है
पलाश सा
शब्द जो महकता है
गुलाब सा

शब्द चाहिए जिसे —
उपयुक्त माध्यम
उपयुक्त समय
शब्द चाहिए जिसे —
उपयुक्त श्रोता
उपयुक्त जगह

जहां से शब्द
किसी हरसिंगार सा
झर सके
और हर शब्द-याचक
अपनी झोली
भर सके 
 
जब तुम पहचान रही थीं
अवसर की उपयुक्तता
मैं वहीं समय के प्रवाह में
पतवार थामे खड़ा था
और ये शब्द प्यार
तुम्हारें होठों पर
मुस्कराहट की तरह जड़ा था
 
तुमने इसे
किसी भी उद्देश्य से कहा हो
मैंने इस शब्द-सुरा को
पूरी तन्मयता से पिया है
सम्भव है —   तुमने फिर
सोचा भी न हो
मैंने तो
पूरी गम्भीरता से जिया है ।

 

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प्रतिक्रियाएँ

  1. जब तुम पहचान रही थीं
    अवसर की उपयुक्तता
    मैं वहीं समय के प्रवाह में
    पतवार थामे खड़ा था
    और ये शब्द प्यार
    तुम्हारें होठों पर
    मुस्कराहट की तरह जड़ा था

    बहुत बहुत सुंदर….आप बहुत ईमानदारी से कविता लिखते हैं….आपकी सभी कवितायें बहुत सुंदर हैं।

  2. बहुत बेहतर शब्द साधना….
    जारी रहे..भाई

  3. सम्भव है – तुमने फिर
    सोचा भी न हो
    मैंने तो
    पूरी गम्भीरता से जिया है ।

    सुंदर !

  4. bahut sundar…
    aanand-vibhor hoon….

    badhaee…

  5. क्या बात है !!! मन मोह लिया आपकी कविता ने…शब्दों की कविता ने निशब्द कर दिया…

  6. मैंने तो
    पूरी गम्भीरता से जिया है ।

    –क्या बात है. बहुत ही उम्दा रचना, प्रियंकर भाई. बहुत बधाई.

  7. शब्द – एक अद्भुत संकलन। गणित से प्रारम्भ हुआ प्रेम हृदय में उतर गया।
    बन्धु, आज फिर कहूंगा – आपकी कलम चाहिये।

  8. तो डूबे हुऎ हैं महाराज प्यार में.. बहुत सही!!

  9. शब्द सबकुछ है। लेना-देना सब शब्द से ही होता है।

  10. bharpoor kavita hai. shabd shabd bol raha hai. Jar Man ko khol raha hai. shabd na hote to hum anjan hote.
    Badhayee

  11. आपके शब्दों को पढ़ते हुए हम पाठक भी ऐसा ही कुछ महसूस करते हैं और मन ही मन कहते हैं –

    तुमने इसे
    किसी भी उद्देश्य से कहा हो
    मैंने इस शब्द-सुरा को
    पूरी तन्मयता से पिया है
    सम्भव है – तुमने फिर
    सोचा भी न हो
    मैंने तो
    पूरी गम्भीरता से जिया है ।

  12. बहुत सुन्दर कविता है.


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