महेन्द्र सिंह पूनिया की एक कविता
दुनिया की सबसे शानदार कविता
दुनिया की सबसे शानदार कविता
कलम से नहीं
हल की नोक से लिखी जाती है
दुनिया की सबसे शानदार कविता
मंडी हाउस में बैठनेवाला दलाल नहीं
लालटेन की रौशनी में
कसीदा काढ़नेवाली
सलमा लिखती है
दुनिया की सबसे शानदार कविता
स्याही से नहीं
सड़क पर पत्थर कूटती
रामरती के
पसीने से लिखी जाती है
दुनिया की सबसे शानदार कविता
चरवाहों के पैरों से
थार के सीने पर लिखी जाती है
दुनिया की सबसे शानदार कविता
अजायबघर से सजे बैठकखानों में नहीं
गिरिडीह की
कोयला-खदानों में लिखी जाती है
दुनिया की सबसे शानदार कविता का पाठ
वातानुकूलित सभागारों में नहीं
उन्मुक्त चांदनी रात में
खेत की मेंड़ पर होता है।
*****
Bahut Khub …
By: Prakash Khandelwal on मार्च 13, 2008
at 6:46 अपराह्न
काश कि ऐसा हुआ करता हो.. शानदार न सही.. कविता का ही होता हो..
By: प्रमोद सिंह on मार्च 13, 2008
at 6:47 अपराह्न
sandar kavita hai. maja aa gaya….lekin giridih ki jagaha yadi dhanbad hota to or bhi maja aata.
By: ravikant ojha on मार्च 13, 2008
at 7:14 अपराह्न
सही है-
दुनियाँ की सब से शानदार कृति
मानव श्रम से सिरजी जाती है।
दुनियां की सारी कृतियां सिरजी जाती हैं
श्रम से ही, केवल और केवल श्रम से ही।
By: दिनेशराय द्विवेदी on मार्च 13, 2008
at 7:45 अपराह्न
बिलकुल सही कहा है इस कविता ने ….अच्छा लगा …बधाई
By: reetesh gupta on मार्च 13, 2008
at 7:47 अपराह्न
शानदार कविता । शुक्रिया पढ़वाने का। आपको शायद ताज्जुब होगा , मंडी हाऊस वाले जिन साहब का इसमें उल्लेख है , उन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। उनके कई कविता संकलन निकल चुके हैं:)का करें, जमाने की हवा लग गई 😦
By: अजित वडनेरकर on मार्च 13, 2008
at 11:26 अपराह्न
जिगर तक उतर गई
By: maithily on मार्च 14, 2008
at 2:22 पूर्वाह्न
श्रम की महत्ता का शानदार गुणगान .
By: रोमी on मार्च 14, 2008
at 3:12 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया कविता…
By: Shiv Kumar Mishra on मार्च 14, 2008
at 12:34 अपराह्न
कविता निस्संदेह शानदार है। लेकिन भरत नाट्यम की कला मजदूरों में नहीं पनपती। नई टेक्नोलॉजी कारखानों में काम करनेवाले मजदूर नहीं बनाते। कहने का मतलब आप समझ ही गए होंगे।
By: अनिल रघुराज on मार्च 14, 2008
at 12:46 अपराह्न
Adaab
Many thanks for visiting my blog and inviting me to your treasure of poetry
Unfortunately I cannot read Hindi – what a shame!
But I am sure that this is a fine place for those who love the arts and the poetry
By: Raza Rumi on मार्च 18, 2008
at 12:30 अपराह्न