( कोटा निवासी महेन्द्र नेह अत्यंत सरस गीतकार हैं . एक-दो बार उनके गीत सुनने का मौका मिला है . प्रस्तुत गीत जो मेरे पसंदीदा गीतों में शामिल है, अभिव्यक्ति (सं०-शिवराम) द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका से लिया गया है . ‘अनवरत’ और ‘तीसरा खंबा’ नामक चिट्ठों पर अपनी बात रखने वाले विधिवेत्ता ब्लॉगर दिनेशराय द्विवेदी के अभिन्न मित्र हैं महेन्द्र नेह और शिवराम )
महेन्द्र नेह का एक जनगीत
रोटी का सवाल
रोटी का सवाल भैया रोटी का सवाल
लाखों-लाख करोड़ों भूखे-नंगों का सवाल
तेरा भी सवाल है ये मेरा भी सवाल
तेरे घर में सूखी रोटी, मेरे घर में फ़ाका
तेरे घर में सेंध लगी तो मेरे घर में डाका
मैं भी फटेहाल भैया तू भी फटेहाल ॥१॥
तुझको मारा खुली सड़क पर, मुझको गलियारे में
तुझको मारा भिनसारे में, मुझको अंधियारे में
जीना है मुहाल मेरा, तेरा भी मुहाल ॥२॥
तू चक्की में पिसा, दबा मैं ज़ालिम चट्टानों में
तू लहरों में फंसा हुआ, मैं पागल तूफ़ानों में
मैं थामूं पतवारें, थोड़ी तू भी झोंक संभाल ॥३॥
तुझ पर चली खेत में गोली, मुझ पर मिल हाते में
दोनों नाम लिखे मंडी के बनिये के खाते में
तू भी हुआ हलाल प्यारे मैं भी हुआ हलाल ॥४॥
तेरी भवें तनी, आंखों में मेरी भी अंगारे
तू भी काट गुलामी, मैं भी तोड़ूं बंधन सारे
मैंने लिया हथौड़ा साथी, तू भी उठा कुदाल ॥५॥
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बहुत बढ़िया गीत है.
By: Shiv Kumar Mishra on अप्रैल 16, 2008
at 10:52 पूर्वाह्न
मैं समझने का यत्न करता रहा – क्या हथौडा और कुदाल लेने से समस्या हल होने वाली है। और मुझे “वन डेफिनेट आंसर” नहीं मिलता।
पता नहीं , मेरी जिज्ञासा में पर्याप्त ईमानदारी है या नहीं।
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on अप्रैल 16, 2008
at 10:58 पूर्वाह्न
राजस्थान के अपने एक मित्र से अत्यन्त जानदार लय में यह गीत सुना और सीखा था , करीब १०-१२ साल पहले । आन्दोलन की रैलियों में सैंकड़ों लोग इसे साथ दोहराते हैं तब समां बन जाता है ।
By: अफ़लातून on अप्रैल 16, 2008
at 11:09 पूर्वाह्न
@ ज्ञानजी : मूल बात अन्याय और दैन्य का जुआ उतारकर सन्नद्ध-कटिबद्ध और विकासोन्मुख होने की है . बाकी हथौड़ा-कुदाल तो प्रतीक भर हैं और आपको अपने प्रतीक चुनने की पूरी आज़ादी है .
@ अफ़लातून भाई : जिस कविता/गीत को सैकड़ों-हज़ारों कंठ दोहरा दें उसकी तो क्या होड़ हो सकती है . अलग किस्म का रोमांचकारी असर होता है .
By: प्रियंकर on अप्रैल 16, 2008
at 11:19 पूर्वाह्न
मारक है ये गीत,पर नेपाल में आज जो हम देख रहे हैं उसमें हथौड़ा और कुदाल की भी अपनी एक भूमिका है इसी से तो आज नेपाल में राजशाही तो समाप्त प्राय: हो गई है….
By: vimal verma on अप्रैल 16, 2008
at 11:24 पूर्वाह्न
रोमाँचकारी गीत ..
इसे अनेकोँ कँठओँ से सुनना,
अभूतपूर्व होगा !
— लावण्या
By: - लावण्या on अप्रैल 16, 2008
at 1:53 अपराह्न
अद्भुत जनगीत है।
By: arun aditya on अप्रैल 16, 2008
at 2:22 अपराह्न
मैं कहीं खड़े होकर गाना चाहता हूं, ख़ासतौर पर ज्ञानदत्तजी के लिए.. कहां गाऊं?
By: प्रमोद सिंह on अप्रैल 16, 2008
at 11:48 अपराह्न
अद्वितीय, अद्भुत. एक रोमांचकारी अहसास.
@ प्रमोद जी,
आपको कब से स्पेस पूछने की जरुरत पड़ गई कि कहाँ गाऊँ????? अरे, आप तो पॉडकास्ट मास्टर हो, ठेलो वहीं से. हम भी सुनेंगे. हा हा 🙂
By: समीर लाल on अप्रैल 17, 2008
at 1:05 पूर्वाह्न
रोटी का सवाल
भैया रोटी का सवालरोटी का सवाल
लाखों-लाख करोड़ों भूखे-नंगों का सवाल
DHANJI DEWASI SARNAU
PASUPALAK PROKOSH MEMBER JAIPUR
VILLAGE SARNAU POST SARNAU TAHIL – SANCHORE JALORE RAJASTHAN
By: DHANJI DEWASI ( SAMELANI PARIWAR SARNAU ) on अप्रैल 17, 2008
at 5:43 पूर्वाह्न
विद्रोही गीत. अद्भुत गीत. बहुत बढ़िया
By: Rajesh Roshan on अप्रैल 17, 2008
at 5:50 पूर्वाह्न
गजब की कविता है । पहली बार पढ़ी । धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
By: ghughutibasuti on अप्रैल 17, 2008
at 6:35 पूर्वाह्न
लोहे का स्वाद न पूछो ग्यान जी से, पूछो उस घोडे से जिसके मुँह मे लगाम है
By: mayank on अप्रैल 17, 2008
at 7:27 पूर्वाह्न
गजब की कविता है । पहली बार पढ़ी । धन्यवाद गजब की कविता है ।
dhanji dewasi sarnau
village – sarnau
By: धनारामजी देवासी ( समेलानी परिवार सरनौ ) on अप्रैल 19, 2008
at 8:32 पूर्वाह्न