नवारुण भट्टाचार्य की एक बांग्ला कविता
(हिंदी अनुवाद : अरविंद चतुर्वेद)
क्रांति के बिम्ब
कुछेक कवि बगैर पैसे के डॉक्टरी कर रहे हैं
चांद पर छलांग लगाने से पहले प्रेमी गिरफ़्तार
पुलिस की गाड़ियां चौबीस घंटे के भीतर
स्कूल-बसों में तब्दील कर दी जाएंगी
आधी रात को जनविरोधी पार्टियों की लाइन
उखाड़ फेंकी जा रही है
लेटरबॉक्स में चिड़ियों के घोंसला बना लेने से काम ठप
किसी सिद्धांतकार ने एक्वेरियम में बिल्ली पाली है
रेडियो कोई नहीं बजाता क्योंकि नेताओं के भाषण सुनना
अच्छा नहीं लग रहा है
बहस हो रही है पौधों और नन्हीं मछलियों पर
उदास संगीत के प्रभाव को लेकर
अब आंसुओं से ही चलेंगी मोटर गाड़ियां
मजदूरों का नाटक करने वाले मजदूरों के हाथों परेशान
कौन कह सकता है समस्या नहीं है हमारी इस नई व्यवस्था में
क्या ऐसा ही लगता है समाचार सुनने के बाद ?
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( समीर रायचौधुरी द्वारा सम्पादित पत्रिका हवा ४९ के ‘अधुनांतिक बांग्ला कविता’ अंक से साभार)
बहुत खूब । कृपया अनुवादक का ससम्मान नाम दें और उन्हें भी बधाई पहुँचाएं ।
By: अफ़लातून on अप्रैल 30, 2008
at 5:59 पूर्वाह्न
नवारुण ज़िन्दाबाद..
By: प्रमोद सिंह on अप्रैल 30, 2008
at 7:04 पूर्वाह्न
बेहतरीन
By: Rajesh Roshan on अप्रैल 30, 2008
at 7:44 पूर्वाह्न
उम्दा पेशकश…. शुक्रिया
By: Rohit Jain on अप्रैल 30, 2008
at 8:02 पूर्वाह्न
Bahut khoobsurat tarzumaa kiya hai aapne. Wallah kya baat hai.Aap bangla kee mithas ko hindi mein failaatey jayen yahee kaamanaa hai.
By: Dr. Goutam Banerjee on अप्रैल 30, 2008
at 9:31 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया प्रस्तुति-आभार.
By: समीर लाल on अप्रैल 30, 2008
at 9:36 पूर्वाह्न
कुछेक कवि बगैर पैसे के डॉक्टरी कर रहे हैं
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दिल की बीमारी में बांट रहे हैं बी कॉम्प्लेक्स की गोलियाँ।
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on अप्रैल 30, 2008
at 10:13 पूर्वाह्न
एक बार फिर.. ज़िन्दाबाद!
By: प्रमोद सिंह on अप्रैल 30, 2008
at 2:16 अपराह्न