युवा कवि राकेश रंजन की एक कविता
हल्लो राजा
हल्लो राजा !
कभी-कभी तो कठिन धूप में
चल्लो राजा !
कभी-कभी तो चिंता-भय से
गल्लो राजा !
कभी-कभी तो जठरागिन में
जल्लो राजा !
जब तिनके-भर सुख की खातिर
स्याह जंगलों-जैसे दुक्खों से जुज्झोगे
तब बुज्झोगे
परजा होना खेल नहीं है
किसी जनम में
इसका सुख से मेल नहीं है !
मैंने पूछा :
राजा, कैसी है तुकबंदी ?
राजा बोले :
बेहद गंदी !
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( नंदकिशोर नवल और संजय शांडिल्य द्वारा संपादित नवीनतम पीढी के कवियों की कविताओं के संकलन ‘संधि-वेला’ से साभार )
हैल्लो, हैल्लो.. थोड़ा रजवा को हिलाते रहना बुरा नहीं..
By: प्रमोद सिंह on मई 27, 2008
at 7:15 पूर्वाह्न
वाह!!!
***राजीव रंजन प्रसाद
By: राजीव रंजन प्रसाद on मई 27, 2008
at 7:31 पूर्वाह्न
सुंदर कविता है, बाबा की नागार्जुन की याद दिलाती हुई।
By: दिनेशराय द्विवेदी on मई 27, 2008
at 8:03 पूर्वाह्न
ये हिस्सा यदि न भी हो तो भी कविता पूरी है और अच्छी भी.युवा कवि राकेश रंजन को ढेरों शुभकामनायें.
मैंने पूछा :
राजा, कैसी है तुकबंदी ?
राजा बोले :
बेहद गंदी !
By: विजय गौड on मई 27, 2008
at 8:12 पूर्वाह्न
हैल्लो राजा
चल्लो राजा ।।
सुंदर कविता ।
छा गये राजा ।।
By: yunus on मई 27, 2008
at 9:43 पूर्वाह्न
वाह. वाह.
कवि ने बड़ी सुन्दरता से ख्याल व्यक्त किए है.
बहुत अच्छे.
By: balkishan on मई 27, 2008
at 9:52 पूर्वाह्न
वाह भैया ! एकदम मस्त.
By: MEET on मई 27, 2008
at 10:29 पूर्वाह्न
बहुत सही है।
घुघूती बासूती
By: ghughutibasuti on मई 27, 2008
at 12:19 अपराह्न
कभी-कभी तो जठरागिन में
जल्लो राजा
-वाह, बहुत बढ़िया.
By: समीर लाल on मई 27, 2008
at 1:33 अपराह्न
बहुत बढ़िया …बधाई
By: reetesh gupta on मई 27, 2008
at 8:40 अपराह्न
बाबा नागार्जुन की याद दिलाती है…….
By: anurag arya on मई 28, 2008
at 2:41 अपराह्न