अष्टभुजा शुक्ल की एक कविता
मृत्यु
कराह सुनकर
जो न टूटे
नींद नहीं,
मृत्यु है
चाहे जितना थका हो आदमी
और चाहे जब सोया हो ।
********
काव्य संकलन ‘दुःस्वप्न भी आते हैं’ से साभार
तस्वीर : प्रभात खबर से साभार
अष्टभुजा शुक्ल की एक कविता
मृत्यु
कराह सुनकर
जो न टूटे
नींद नहीं,
मृत्यु है
चाहे जितना थका हो आदमी
और चाहे जब सोया हो ।
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काव्य संकलन ‘दुःस्वप्न भी आते हैं’ से साभार
तस्वीर : प्रभात खबर से साभार
1 में प्रकाशित किया गया
लगातार अच्छी कवितायें पढने को मिल रही है आपके यहां, प्रियंकर जी. अच्छा काम हो रहा है
है यह.
By: विजय गौड on जून 18, 2008
at 2:07 अपराह्न
bhut hi aachi rachana.likhate rhe.
By: Rashmi Saurana on जून 18, 2008
at 3:42 अपराह्न
बहुत गहरी रचना.शुक्ल जी और आपको बधाई.
By: sameerlal on जून 18, 2008
at 7:06 अपराह्न
छोटी मगर मारक.
By: संजय बेंगाणी on जून 19, 2008
at 5:17 पूर्वाह्न