( स. ही. वात्स्यायन अज्ञेय की यह कविता भाई आशुतोष ने अभी एक-दो दिन पहले अपने नए-नए शुरु किए गए ब्लॉग शब्दार्थ ( http://shabdarth.wordpress.com/2008/07/) पर पोस्ट की है . भागलपुर विश्वविद्यालय के छात्र रहे डॉ. आशुतोष आंदोलन की पृष्ठभूमि से आये हैं और कोलकाता के एक महिला महाविद्यालय में अरसे से पढाते हैं . बहुत पढे-लिखे, थोड़े आलसी, पर काफ़ी काम के आदमी हैं, बशर्ते उनसे काम लिया जा सके . अपनी ट्रेडमार्क दाढी पर मुग्ध रहते हैं और जिस दिन उसे ट्रिम करवा लेते हैं शर्तिया उम्र से पांच साल कम दिखते हैं . हाल ही में जीवन की स्वर्णजयंती मना चुके इन प्राध्यापक-रीडर महोदय की फ़िटनेस रश्क करने लायक है . अब आए हैं तो हिंदी ब्लॉग जगत से भागने न पाएं इसके लिए आप सब इस नए ब्लॉगर का टिप्पणियों द्वारा इस्तकबाल करें . ऊपर एक बात कहने से छूट गई कि इन्होंने जुड़वां ब्लॉग को जन्म दिया है . दूसरे का नाम है अपनी वाणी ( http://apanivani.blogspot.com/ ) . अन्त में यह ज़रूर कहना चाहूंगा कि इनके रहने से ( टिके रहने से ) ब्लॉग जगत की समृद्धि बढेगी .
अज्ञेय की एक कविता
जो पुल बनायेंगे
जो पुल बनायेंगे
वे अनिवार्यतः
पीछे रह जायेंगे ।
सेनायें हो जायेंगी पार
मारे जायेंगे रावण
जयी होंगे राम
जो निर्माता रहे इतिहास में
बन्दर कहलायेंगे ।
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Very exceelant. Thanks Kshetrapal Sharma
By: KshetrapalSharma on जुलाई 10, 2008
at 10:46 पूर्वाह्न
क्या बात है !!!! बहुत सुंदर कहा है…बधाई
By: reetesh gupta on जुलाई 10, 2008
at 12:47 अपराह्न
आशुतोष जी का तहेदिल से स्वागत है..अज्ञेय की इस खूबसूरत कविता के लिए साधुवाद!
By: मिथिलेश श्रीवास्तव on जुलाई 10, 2008
at 1:07 अपराह्न
सुंदर कविता। कम शब्दों में बहुत कुछ कह दे रही है।
By: अशोक पाण्डेय on जुलाई 10, 2008
at 2:22 अपराह्न
कविता लोवेस दिनेश
By: denish on मई 14, 2009
at 6:59 अपराह्न