Posted by: PRIYANKAR | जुलाई 24, 2008

लोहा

एकांत श्रीवास्तव की एक कविता

 

लोहा

 

जंग लगा लोहा पांव में चुभता है
तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ
लोहे से बचने के लिए नहीं
उसके जंग के संक्रमण से बचने के लिए

मैं तो बचाकर रखना चाहता हूं
उस लोहे को जो मेरे खून में है 
जीने के लिए इस संसार में
रोज़ लोहा लेना पड़ता है

 
एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है
दूसरा इज़्ज़त के साथ
उसे खाने के लिए

 
एक लोहा पुरखों के बीज को
बचाने के लिए लेना पड़ता है
दूसरा उसे उगाने के लिए

 
मिट्टी में, हवा में, पानी में
पालक में और खून में जो लोहा है
यही सारा लोहा काम आता है एक दिन
फूल जैसी धरती को बचाने में ।

 

****

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Responses

  1. खूब बहुत खूब….

  2. वाह, क्‍या बात है।
    हमारी नजर में इसी लोहे की महंगाई इन दिनों हमें रुला रही है, महंगाई का रक्‍तबीज
    बनकर।
    शायद लोहा पर हिन्‍दी में कई अच्‍छी कविताएं लिखी गयी हैं, उन सभी को बारी-बारी से
    आप यहां पढ़ाते तो मजा आ जाता।

  3. क्या सूक्ष्म बात है – हमें बचाव करना होता है लोहे से नहीं , टिटनेस से!

  4. बहुत उम्दा, क्या बात है!

  5. अद्भुत

  6. बेहतरीन प्रस्तुति.
    आभार.

  7. वाह

  8. Ekant Shrivastav jee kee kavitayen hamesha samvedna se bhari hoti hain. Rang par likhee unkee kavitayen kaun bhul sakta hai. Loha padhkar achchha laga. – Hindi Sahitya, aadhunikhindisahitya.wordpress.com.

  9. Ekant Jee ki kavitayen hoti hi bemisal hai. “LOHA” bhi unme se hi hai.


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