सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता
जड़ें
जड़ें कितनी गहरीं हैं
आँकोगी कैसे ?
फूल से ?
फल से ?
छाया से ?
उसका पता तो इसी से चलेगा
आकाश की कितनी
ऊँचाई हमने नापी है
धरती पर कितनी दूर तक
बाँहें पसारी हैं।
जलहीन सूखी पथरीली
ज़मीन पर खड़ा रहकर भी
जो हरा है
उसी की जड़ें गहरी हैं
वही सर्वाधिक प्यार से भरा है।
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जलहीन सूखी पथरीली
ज़मीन पर खड़ा रहकर भी
जो हरा है
उसी की जड़ें गहरी हैं
वही सर्वाधिक प्यार से भरा है।
बहुत अच्छा लिखा है।बधाई स्वीकारें।
By: ritu bansal on अगस्त 6, 2008
at 10:21 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर. पथरीली ज़मीन पर जड़ें सब से नहीं जमेंगी.
By: Shiv Kumar Mishra on अगस्त 6, 2008
at 11:04 पूर्वाह्न
इतनी सुंदर कविता पढ़ाने के लिए आभार।
By: अशोक पाण्डेय on अगस्त 6, 2008
at 1:17 अपराह्न