गज़ल अदब की रानी है
एक आंख से कानी है
गज़ल अदब की रानी है
खुशी बिदेसी है तो क्या
गम तो हिंदुस्तानी है
बन्दर अपना दादा है
बिल्ली शेर की नानी है
अबके दिसम्बर में सर्दी
दिल्ली से मंगवानी है
मार्च में थोड़ी-सी गर्मी
शिमला पर भिजवानी है
रेत ही रेत जमीं पर है
आस्मान पर पानी है
इसमें तो तुम हंसते हो
ये तस्वीर पुरानी है
नक्कादों का कहना क्या
सब उनकी मनमानी है
हुआ खुदा का करना यूं
आगे वही कहानी है
आज नहीं तो कल ‘अल्वी’
मौत कभी तो आनी है ।
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chhoti bahar men sunder sher kahe hain
mubarak
By: alka mishra on अप्रैल 6, 2009
at 11:26 पूर्वाह्न
आंच लगी तो ये जाना
दूध नहीं, वह पानी है
कल तक ही यह अंधी थी
आज सियासत कानी है
सिलवट से जो भरी हुई
मेरी ही पेशानी है
वोट लूट कर आगे बढ़
दुनियाँ आनी-जानी है
मेरे लिए रसूख है जो
तेरे लिए मनमानी है
तुझे रोक दें आने से
तेरी यही कहानी है
धर्म जेब में लिए चले
समझो वो अडवानी है
आतंकी के लिए खड़ा
देखो जेठमलानी है
पैसे लेकर उड़ता जो
वो मुकेश अम्बानी है
भारत भाग्यविधाता ये
इनसे ही परेशानी है
By: आशिक 'मुल्तानी' on अप्रैल 6, 2009
at 12:49 अपराह्न
सुंदर…
इसमें तो तुम हंसते हो
ये तस्वीर पुरानी है
By: दिनेशराय द्विवेदी on अप्रैल 6, 2009
at 1:23 अपराह्न
बहुत प्रिय विधा है गजल। पूरी दोनों बड़ी बड़ी हिरन की आंखों वाली। और खूब काजल ढेपारे! कानी तो कदापि नहीं।
बाकी गजल की तकनीकी जानकारी नहीं, वर्ना हम खुद न लिख लेते!
मुहम्मद अल्वी जी बहुत बढ़िया लिखते हैं।
By: Gyan Dutt Pandey on अप्रैल 6, 2009
at 2:29 अपराह्न
बहुत खूब है जी ।
इनको और पढ़वा सकते हैं क्या ।
By: यूनुस on अप्रैल 6, 2009
at 4:28 अपराह्न
बहुत अच्छी हैं …
By: संगीता पुरी on अप्रैल 7, 2009
at 12:34 पूर्वाह्न
इसमें तो तुम हंसते हो
ये तस्वीर पुरानी है
क्या बात है …बहुत सुंदर भाव ..धन्यवाद
By: Reetesh Gupta on अप्रैल 8, 2009
at 12:28 अपराह्न
अल्वी ने जो ग़ज़ल कही
वह तो लगी पुरानी है।
नया मसाला झोंक दिया
वो आशिक ‘मुल्तानी’ है।
असल नकल का फर्क़ मिटा
दोनो की मस्त रवानी है।
By: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी on अप्रैल 15, 2009
at 4:23 अपराह्न