अशोक वाजपेयी की एक कविता
विदा
तुम चले जाओगे
पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है
पहली बारिश के बाद
हवा में धरती की सोंधी-सी गंध
भोर के उजास में
थोड़ा-सा चंद्रमा
खंडहर हो रहे मंदिर में
अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार
तुम चले जाओगे
पर थोड़ी-सी हँसी
आँखों की थोड़ी-सी चमक
हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी
यहीं रह जाएँगे
प्रेम के इस सुनसान में
तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे .
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तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे
tumhare jaane ke baad bhi tumhara ahsaas hoga. wah.
By: yogesh verma on अप्रैल 9, 2009
at 1:56 अपराह्न
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे .
बहुत कुछ कह जाती है यह कविता…………
By: sandhya arya on अप्रैल 9, 2009
at 2:38 अपराह्न
अहोक वाजपेयी जी को सुना है। अच्छे लगे थे – चेहरे-मोहरे और बातों से।
यह कविता भी अच्छी लगी।
By: Gyan Dutt Pandey on अप्रैल 9, 2009
at 3:55 अपराह्न
meri priya kavita. isko padhkar Ashok Vajpeyiji ke sangrah THODI SI JAGAH ki yad aa gai.
aabhar
pallav
By: pallav on अप्रैल 9, 2009
at 5:13 अपराह्न
its good
By: AJIT PAL SINGH DAIA on अप्रैल 9, 2009
at 5:32 अपराह्न
हर व्यक्ति कुछ न कुछ छोड़ ही जाता है, गंध, स्पर्श, ध्वनि या कुछ ज्ञान।
By: दिनेशराय द्विवेदी on अप्रैल 9, 2009
at 6:38 अपराह्न
behad khubsurat
By: mehek on अप्रैल 10, 2009
at 5:11 पूर्वाह्न
बहुत बढिया लिखा है … बधाई।
By: संगीता पुरी on अप्रैल 10, 2009
at 5:37 पूर्वाह्न
अशोक वाजपेयी जी की कविता है तो बेशक अच्छी ही होगी। 🙂
पढ़वाने का शुक्रिया।
By: सिद्धार्थ त्रिपाठी on अप्रैल 10, 2009
at 5:30 अपराह्न
[…] (अनहद नाद से) […]
By: विदा: अशोक वाजपेयी « Swantah Sukhay on मई 9, 2009
at 7:52 अपराह्न
Bahut Achha likhte hai Vajpai ji. Bade aur samaniy Rachnakar hai dil ko chu jani wali bat kam aur ardhpurn shabdo me .
By: Dilip Okhade on फ़रवरी 2, 2013
at 11:16 पूर्वाह्न
अति सुंदर , हृदयांदोलित करने वाले छंदों के लिए अभिनन्दन!
By: rijay on मार्च 19, 2014
at 12:45 पूर्वाह्न