ज्ञानेन्द्रपति की एक कविता
बीज व्यथा
वे बीज
जो बखारी में बन्द
कुठलों में सहेजे
हण्डियों में जुगोए
दिनोंदिन सूखते देखते थे मेघ-स्वप्न
चिलकती दुपहरिया में
उठँगी देह की मुंदी आँखों से
उनींदे गेह के अनमुँद गोखों से
निकलकर
खेतों में पीली तितलियों की तरह मँडराते थे
वे बीज– अनन्य अन्नों के एकल बीज
अनादि जीवन-परम्परा के अन्तिम वंशज
भारतभूमि के अन्नमय कोश के मधुमय प्राण
तितलियों की तरह ही मार दिये गये
मरी पूरबी तितलियों की तरह ही
नायाब नमूनों की तरह जतन से सँजो रखे गये हैं वे
वहाँ– सुदूर पच्छिम के जीन-बैंक में
बीज-संग्रहालय में
सुदूर पच्छिम जो उतना दूर भी नहीं है
बस उतना ही जितना निवाले से मुँह
सुदूर पच्छिम जो पुरातन मायावी स्वर्ग का है अधुनातन प्रतिरूप
नन्दनवन अनिन्द्य
जहाँ से निकलकर
आते हैं वे पुष्ट-दुष्ट संकर बीज
भारत के खेतों पर छा जाने
दुबले एकल भारतीय बीजों को बहियाकर
आते हैं वे आक्रान्ता बीज टिड्डी दलों की तरह छाते आकाश
भूमि को अँधारते
यहाँ की मिट्टी में जड़ें जमाने
फैलने-फूलने
रासायनिक खादों और कीटनाशकों के जहरीले संयंत्रों की
आयातित तकनीक आती है पीछे-पीछे
तुम्हारा घर उजाड़कर अपना घर भरनेवाली आयातित तकनीक
यहाँ के अन्न-जल में जहर भरनेवाली
जहर भरनेवाली शिशुमुख से लगी माँ की छाती के अमृतोपम दूध तक
क़हर ढानेवाली बग़ैर कुहराम
वे बीज
भारतभूमि के अद्भुत जीवन-स्फुलिंग
अन्नात्मा अनन्य
जो यहाँ बस बहुत बूढ़े किसानों की स्मृति में ही बचे हुए हैं
दिनोदिन धुँधलाते– दूर से दूरतर
खोए जाते निर्जल अतीत में
जाते-जाते हमें सजल आँखों से देखते हैं
कि हों हमारी भी आँखें सजल
कि उन्हें बस अँजुरी-भर ही जल चाहिए था जीते जी सिंचन के लिए
और अब तर्पण के लिए
बस अँजुरी-भर ही जल
वे नहीं हैं आधुनिक पुष्ट-दुष्ट संकर बीज–
क्रीम-पाउडर की तरह देह में रासायनिक खाद-कीटनाशक मले
बड़े-बड़े बाँधों के डुबाँव जल के बाथ-टब में नहाते लहलहे ।
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( काव्य संग्रह ‘संशयात्मा‘ से साभार )
यथार्थ से प्रत्यक्ष कराती एक कविता! धन्यवाद पढ़वाने के लिए।
By: दिनेशराय द्विवेदी on मई 7, 2009
at 12:53 अपराह्न
बहुत आभार इस रचना को पढ़वाने का.
By: समीर लाल on मई 7, 2009
at 3:40 अपराह्न
संकर बीज शंकर जी की पिण्डी रिप्लेस कर माइकलएजेंलो की कॄति का प्लास्टर आफ पेरिस का रिप्लिका धर रहे हैं।
अगले साल एक नया रिप्लिका खरीदना होगा!
By: Gyan Dutt Pandey on मई 7, 2009
at 4:09 अपराह्न
पारम्परिक किसानों की बहुत बड़ी समस्या का बयान करती कविता। बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई।
By: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी on मई 7, 2009
at 4:51 अपराह्न
अद्भुत….
By: Dr Anurag on मई 8, 2009
at 8:11 पूर्वाह्न