
अरुण कमल
अरुण कमल की एक कविता
अपनी पीढी के लिए
वे सारे खीरे जिनमें तीतापन है हमारे लिए
वे सब केले जो जुड़वां हैं
वे आम जो बाहर से पके पर भीतर खट्टे हैं चूक
और तवे पर सिंकती पिछली रोटी परथन की
सब हमारे लिए
ईसा की बीसवीं शाताब्दी की अंतिम पीढी के लिए
वे सारे युद्ध और तबाहियां
मेला उखडने के बाद का कचडा महामारियां
समुद्र में डूबता सबसे प्राचीन बंदरगाह
और टूट कर गिरता सर्वोच्च शिखर
सब हमारे लिए
पोलिथिन थैलियों पर जीवित गौवों का दूध हमारे लिए
शहद का छत्ता खाली हमारे लिए वो हवा फेफड़े की अंतिम मस्तकहीन धड़
पूर्वजों के सारे रोग हमारे रक्त में
वे तारे भी हमारे लिए जिनका प्रकाश अब तक पहुंचा ही नहीं हमारे पास
और वे तेरह सूर्य जो कहीं होंगे आज भी सुबह की प्रतीक्षा में
सबसे सुंदर स्त्रियां और सबसे सुंदर पुरूष
और वो फूल जिसे मना है बदलना फल में
हमारी ही थाली में शासकों के दांत छूटे हुए
और जरा सी धूप में धधक उठती आदिम हिंसा
जब भी हमारा जिक्र हो कहा जाए
हम उस समय जिए जब
सबसे आसान था चंद्रमा पर घर
और सबसे मोहाल थी रोटी
और कहा जाए
हर पीढी़ की तरह हमें भी लगा
कि हमारे पहले अच्छा था सब कुछ
और आगे सब अच्छा होगा ।
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‘जब भी हमारा जिक्र हो कहा जाए
हम उस समय जिए जब
सबसे आसान था चंद्रमा पर घर
और सबसे मुहाल थी रोटी’
जानदार पंक्तियाँ!
By: vjayshankar chaturvedi on मई 8, 2009
at 12:33 अपराह्न
बहुत जबर्दस्त दमदार कविता। आज के वक्त और नई पीढ़ी का दमदार वक्तव्य भी है।
By: दिनेशराय द्विवेदी on मई 8, 2009
at 4:10 अपराह्न
क्या बतायें कितनी बौनी है हमारी पीढ़ी। समय के एक टापू में कैद, अपने को सर्वशक्तिमान मानती।
By: Gyan Dutt Pandey on मई 9, 2009
at 11:22 पूर्वाह्न
भाई पढ़ कर लगा अब कुछ देर चुप रहूं ….. शुक्रिया !!
By: मीत on मई 19, 2009
at 4:20 अपराह्न