कन्हैयालाल सेठिया (1919-2008)
( विरल ही किसी कवि के गीत को वह मान्यता मिलती है जिसके तहत एक पूरा का पूरा जन-समुदाय उसे अपनी अस्मिता — अपनी पहचान — से जोड़कर देखने लगे . राजस्थानी और हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि कन्हैयालाल सेठिया का यह गीत ऐसा ही एक कालजयी गीत है . अगर इसे राजस्थानी उप-राष्ट्रीयता का अघोषित राष्ट्रगीत कहा जाए तो अनुचित न होगा . आप भी इसे पढ़ें-सुनें और आनन्दित हों )
धरती धोरां री !
धरती धोरां री !
आ तो सुरगां नै सरमावै
ईं पर देव रमण नै आवै
ईं रो जस नर नारी गावै
धरती धोरां री !
सूरज कण कण नै चमकावै
चन्दो इमरत रस बरसावै
तारा निछरावल कर ज्यावै
धरती धोरां री !
काळा बादलिया घहरावै
बिरखा घूघरिया घमकावै
बिजली डरती ओला खावै
धरती धोरां री !
लुळ लुळ बाजरियो लैरावै
मक्की झालो दे’र बुलावै
कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै
धरती धोरां री !
पंछी मधरा मधरा बोलै
मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै
झीणूं बायरियो पंपोळै
धरती धोरां री !
नारा नागौरी हिद ताता
मदुआ ऊंट अणूंता खाथा !
ईं रै घोड़ां री के बातां ?
धरती धोरां री !
ईं रा फल फुलड़ा मन भावण
ईं रै धीणो आंगण आंगण
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण
धरती धोरां री !
ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो
ओ तो रण वीरां रो खूंटो
ईं रो जोधाणूं नौ कूंटो
धरती धोरां री !
आबू आभै रै परवाणै
लूणी गंगाजी ही जाणै
ऊभो जयसलमेर सिंवाणै
धरती धोरां री !
ईं रो बीकाणूं गरबीलो
ईं रो अलवर जबर हठीलो
ईं रो अजयमेर भड़कीलो
धरती धोरां री !
जैपर नगरयां में पटराणी,
कोटा बूंटी कद अणजाणी ?
चम्बल कैवै आं री का’णी
धरती धोरां री !
कोनी नांव भरतपुर छोटो
घूम्यो सुरजमल रो घोटो
खाई मात फिरंगी मोटो
धरती धोरां री !
ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो
मोबी हरियाणो है प्यारो
मिलतो तीन्यां रो उणियारो
धरती धोरां री !
ईडर पालनपुर है ईं रा
सागी जामण जाया बीरा
ऐ तो टुकड़ा मरू रै जी रा
धरती धोरां री !
सोरठ बंध्यो सोरठां लारै
भेळप सिंध आप हंकारै
मूमल बिसरयो हेत चितारै
धरती धोरां री !
ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां
ईं पर जीवण प्राण उवारां
ईं री धजा उडै गिगनारां
धरती धोरां री !
ईं नै मोत्यां थाल बधावां
ईं री धूल लिलाड़ लगावां
ईं रो मोटो भाग सरावां
धरती धोरां री !
ईं रै सत री आण निभावां
ईं रै पत नै नहीं लजावां
ईं नै माथो भेंट चढ़ावां
मायड़ कोड़ां री
धरती धोरां री !
*****
इस गीत को सुनने के लिए क्लिक करें : धरती धोरां री ………
पूरा गीत सुनाने के लिये आभार.. अपनी धरती को याद करने के लिये इससे बेहतर कोई माध्यम नहीं हो सकता….धन्यवाद..
By: Ranjan on जून 11, 2009
at 6:40 पूर्वाह्न
ध्यान से सुनने पर पाया कि गीत के text और audio में काफी फर्क है.. सही रचना कौनसी है?
By: Ranjan on जून 11, 2009
at 6:45 पूर्वाह्न
bahut he sundar v srahniya pryas.. acha lga ek arse baad pura geet padhkar…
prithvi
By: prithvi on जून 11, 2009
at 10:10 पूर्वाह्न
veer bhogya vasundhara ! jai rajasthan!
By: munish on जून 11, 2009
at 5:04 अपराह्न
madhur sangit basati shabo our bhaw ka anutha talmel……karnpriye kawita
By: omji arya on जून 12, 2009
at 1:57 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर। मैं कुछ शब्दों से अपरिचित हूँ। उदाहरण के लिए: धोरा का क्या अर्थ है?
By: Laxmi N. Gupta on जून 19, 2009
at 12:38 अपराह्न
Dhoro means ret ke tile
By: Devraj Singh Ratnu on सितम्बर 13, 2010
at 10:58 पूर्वाह्न
ye bahut hi aacha geet hai, thanks
By: suresh agarwal on जुलाई 11, 2009
at 5:54 अपराह्न
mchfgyiuligjguuffjydfyfyfj
By: bhawarlal on अगस्त 1, 2009
at 10:17 पूर्वाह्न
rsshthtdgxfsrfszerszetsetngdetgd
By: bhawarlal on अगस्त 1, 2009
at 10:17 पूर्वाह्न
This is very good to preserve our glorious heritage for future generation.
By: dhansukh Thory on अगस्त 24, 2009
at 3:35 अपराह्न
jai jai rajasthan! bahut sunder dhora yani ret ka tiba
By: karan on सितम्बर 3, 2009
at 7:49 अपराह्न
kavita
By: mukeshsingh on सितम्बर 14, 2009
at 7:52 पूर्वाह्न
kavita ka matlab kya hai
By: mukeshsingh on सितम्बर 14, 2009
at 7:55 पूर्वाह्न
MAI HINDI MAI COMMENTS DARJ KARVANA CHATA HUN. YAH GEET SUNNE AUR GANE PAR HARDY PULKIT HO JATA HAI.GOURI SHANKAR BAGRA ,PARBATSAR , NAGOUR, RAJASTHAN
By: GOURI SHANKAR BAGRA on मई 29, 2010
at 11:47 पूर्वाह्न
घणमोली बात। सेठियाजी री इण रचना मांय आखै राजस्थान री विगत अर बडम है। सांचलो चितराम कैय सकां इण नै धोरां धरती राजस्थान रो।
म्हांनै गरब अर गुमेज है कै म्हे सेठियाजी री धरती मांय जलम लियो।
जै सेठियाजी, जै राजस्थान।
By: दुलाराम सहारण on जून 18, 2010
at 4:01 पूर्वाह्न
is link par aao aur is geet ka video suno-dekho…
http://rajasthanirandhan.blogspot.com/
By: Dr. satyanarayan soni on जून 23, 2010
at 2:47 अपराह्न
बहुत सुन्दर गीत लिखा था सेठियाजी ने । सुनकर एवं पढकर आनँद आ गया BSTC BOY MANOJ PUROHI TO KI DHANI , MOHANWARI, NAWALGARH , RAJ
By: MANOJ KALYAN on फ़रवरी 10, 2011
at 9:32 पूर्वाह्न
अत्ति सुन्दर जय जय राजस्थान
By: Ravindra Bagra on अप्रैल 23, 2016
at 5:09 अपराह्न