ज्ञानदत्त जी के आदेश पर कोलकाता के हमारे अत्यंत प्रिय वरिष्ठ कवि-गीतकार दादा छविनाथ मिश्र का एक और ऋचागीत प्रस्तुत है, जल की अभ्यर्थना का गीत :
( शं नो देवीर अभिष्टय
आपो भवन्तु पीतये ।
शं योर अभिस्रवन्तु नः )
— ऋग्वेद संहिता : १०/९/४
जल ज्योतिर्मय वह आंचल है
जहां खिला
यह सृष्टि-कमल है
जल ही जीवन का सम्बल है
आपोमयं जगत यह सारा
यही प्राणमय अन्तर्धारा
पृथिवी का सुस्वादु सुअमृत
औषधियों में नित्य निर्झरित
अग्नि-सोममय रस उज्ज्वल है
हरीतिमा से नित्य ऊर्मिला
हो वसुंधरा सुजला सुफला
देवि, दृष्टि दो सुषम सुमंगल
दूर करो तुम अ-सुख-अमंगल
परस तुम्हारा गंगाजल है
जल के बिना सभी कुछ सूना
मोती-मानुष चंदन-चूना
देवितमे मा जलधाराओ
गगन गुहा से रस बरसाओ
वह रस शिवतम
ऊर्जस्वल है
ऋतच्छन्द का बिम्ब विमल है
जल ही जीवन का सम्बल है ।
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(वैदिक ऋचाओं के गीतान्तरण ’श्रुति सुगन्ध’ से साभार)
आभार आपका और ज्ञानदत्त जी का भी.
By: समीर लाल on जून 26, 2009
at 2:26 पूर्वाह्न
सुंदर है जल गान
प्रतीक्षारत हैं कब लाएंगे
यह अमृत मेघ?
By: दिनेशराय द्विवेदी on जून 26, 2009
at 2:46 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर। वरुण देव की अभी प्रतीक्षा ही चल रही है।
यह प्रस्तुति के लिये बहुत धन्यवाद प्रियंकर जी।
By: Gyan Dutt Pandey on जून 27, 2009
at 10:41 पूर्वाह्न