आलोक श्रीवास्तव की कविता-3
हिंदी का लेखक
कहां है मुर्शिदाबाद ?
कौन आज भी पराजित होता है प्लासी में ?
किस दुख को कह नहीं पा रही हमारी हिंदी इस बरस ?
विद्यापति कैसे बदल गया राजकमल चौधरी में ?
सन ६४ में भी होते थे शोभामंडित आयोजन दिल्ली में
जिसमें आज गदगद शरीक होता साहित्य-समाज;
कहां थे तब मुक्तिबोध ?
कौन रोता है पटना की सड़कों पर
दूर देश में किसकी प्रिया बाट अगोरती ?
क्या करते हैं आज गोरख के साथी कवि-साहित्यकार-पत्रकार ?
कितने तो सवाल हैं
पर सभी सवालों से बड़ा ज्ञानपीठ
बड़े हैं आयोजन, दूतावास बड़े
मध्यमवर्ग के क्रांति-विचारक लेखक के सुख-सौभाग्य बड़े
जो हार रही है गांव-गली-जनपद
वह हिंदी की जनता है
इस जनता से हिंदी के लेखक का
शीष बड़ा, पांव बड़े …
*****
(काव्य संकलन ’यह धरती हमारा ही घर है’ से साभार)
अद्भुत….
By: Dr Anurag on जुलाई 17, 2009
at 2:58 अपराह्न
वाह!
यह कौन है जो हिन्दी की खाता है
हिन्दी से खेलता है
हिन्दी को ठेलता है
मैं पूछता हूं – यह कौन है
तो अपरिचय दिखाती
हिन्दी की जनता मौन है! 🙂
By: Gyan Dutt Pandey on जुलाई 17, 2009
at 5:06 अपराह्न
कितने तो सवाल हैं
पर सभी सवालों से बड़ा ज्ञानपीठ
बड़े हैं आयोजन, दूतावास बड़े
मध्यमवर्ग के क्रांति-विचारक लेखक के सुख-सौभाग्य बड़े
बहुत अच्छा लिखा है आपने। साधुवाद।
By: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी on जुलाई 17, 2009
at 5:11 अपराह्न
बहुत खूब ! शुभकामनायें !
By: सतीश on जुलाई 18, 2009
at 4:50 पूर्वाह्न
सच्ची बहुत सवाल है..
कुछ अनुत्तरित और कुछ जिनके जवाब दिए नहीं जा रहे.. सुंदर
By: prithvi on जुलाई 19, 2009
at 4:51 अपराह्न