Posted by: PRIYANKAR | जुलाई 26, 2009

उम्मीद

अरुण कमल की एक कविता

 

 उम्मीद

 

आज तक मैं यह समझ नहीं पाया
कि हर साल बाढ़ में पड़ने के बाद भी
लोग दियारा छोड़कर कोई दूसरी जगह क्यों नहीं जाते ?
समुद्र में आता है तूफान
तटवर्ती सारी बस्तियों को पोंछता

वापस लौट जाता है

और दूसरे ही दिन तट पर फिर

बस जाते हैं गाँव —

क्यों नहीं चले जाते ये लोग कहीं और ?
हर साल पड़ता है मुआर
हरियरी की खोज में चलते हुए गौवों के खुर
धरती की फाँट में फँस-फँस जाते हैं
फिर भी कौन इंतजार में आदमी

बैठा रहता है द्वार पर ?

कल भी आयेगी बाढ़
कल भी आयेगा तूफान
कल भी पड़ेगा अकाल
आज तक मैं समझ नहीं पाया
कि जब वृक्ष पर एक भी पत्ता नहीं होता
झड़ चुके होते हैं सारे पत्ते
तो सूर्य डूबते-डूबते
बहुत दूर से चीत्कार करता
पंख पटकता
लौटता है पक्षियों का एक दल
उसी ठूँठ वृक्ष के घोंसलों में
क्यों ? आज तक मैं समझ नहीं पाया ।

****

Advertisement

Responses

  1. yah prakritik ka rahasya hai…..yah mujhe bhi samajh me aata………sundar abhiwyakti

  2. बहुत सुन्दर सटीक रचना. बधाई.

  3. shayad apne basere se lagav aur apnapan ke karan…

  4. आभार इस उम्दा रचना को पढ़वाने का.

  5. फिल्म का गीत याद आ रहा है – कितना सुख है बन्धन में।

  6. sundar!


एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

श्रेणी

%d bloggers like this: