Posted by: PRIYANKAR | अगस्त 4, 2009

किसको नमन करूं मैं

रामधारी सिंह ‘दिनकर’  की एक कविता

 

 किसको नमन करूं मैं

 

तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं ?

 
भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ?
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है,
मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है।
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ?

 
भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है ।
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है ।
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं ?

 
खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से,
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से,
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है,
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है।
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं ?

 
दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं,
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं,
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन,
खोल रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन ।
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं ?

 
उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है,
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है,
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है,
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है।
मानवता के इस ललाट-चंदन को नमन करूँ मैं ?

 

*****

काव्य संग्रह ’नील कुसुम’ ( 1954 ) से साभार


Responses

  1. aapka prayas bahut sundar hai. main apni kavitayen kaise bhej sakti hun?

  2. सुन्दर कविता पढवाने के लिए आभार। कल आपने इसका…
    ‘मन एक मैली कमीज़ है . संदर्भ : भवानी भाई’
    जिक्र किया था। क्या उपलब्ध करवा सकेंगे?
    घुघूती बासूती

  3. aapki rachanao par kuchh kahane ka matalab suraj ko diopak dikhane jaisa hai……..padhakar mai kirtagya hu

  4. Bahut shaandar kavita hai, padhwane ke liye aabhaar.
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

  5. दिनकर जी की कविता मन में जोश भर देती है। अपने भारत देश के प्रति हमारी श्रद्धा बढ़ जाती है ऐसी कविता पढ़कर। आपको बहुत धन्यवाद।

  6. ओह, दिनकर जी मुझे प्रिय हैं – इसलिये कि मुझे समझ आते हैं!

  7. कविता को समर्पित बहुत सुंदर ब्लॉग है सबसे पहले सुनील गंगोपाध्याय कि कविता पढ़ी क्योंकि उस पर मेरे एक प्रिय कवि प्रमोद कौंसवाल की टिप्पणी थी. प्रियंकर जी आपके बारे में चिट्ठे पर कुछ जानकारी नहीं है ? या मैंने जादा गहराई नापी नहीं है अभी.

  8. लो जी परिचय इतना में मिल गया जिसे मन खोज रहा था.


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