राजेन्द्र राजन की एक कविता
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थे
तब वे गुलछर्रे उड़ा रहे थे
जब तुम मरीज की नब्ज टटोल रहे थे
वे तिजोरियां खोल रहे थे
जब तुम गरीब आदमी को ढांढस बंधा रहे थे
वे गरीबों को उजाड़ने की
नई योजनाएं बना रहे थे
जब तुम जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहे थे
वे संविधान में सेंध लगा रहे थे
वे देशभक्त हैं
क्योंकि वे व्यवस्था के हथियारों से लैस हैं
और तुम देशद्रोही करार दिए गए
जिन्होंने उन्नीस सौ चौरासी किया
और जिन्होंने उसे गुजरात में दोहराया
जिन्होंने भोपाल गैस कांड किया
और जो लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ाते रहे
उनका कुछ नहीं बिगड़ा
और तुम गुनहगार ठहरा दिए गए
लेकिन उदास मत हो
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
तुम हो हमारे आंग सान सू की
हमारे लिउ श्याओबो
तुम्हारी जय हो ।
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nice
By: loksangharsha on दिसम्बर 31, 2010
at 1:57 पूर्वाह्न
सुधि कविता के लिए बधाई!
एक इल्तजा,
बस देशद्रोही को राजद्रोही कर दें।
By: दिनेशराय द्विवेदी on दिसम्बर 31, 2010
at 3:29 पूर्वाह्न
I respect your personality, (not Vinayak) Priyankar jee!
By: Gyandutt Pandey on मार्च 26, 2011
at 8:59 अपराह्न