आलोक धन्वा की एक कविता
जिलाधीश
तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो
तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो
जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो
एक ऐसे समय की भाषा जब संसद का जन्म नहीं हुआ था
तुम क्या सोचते हो
संसद ने विरोध की भाषा और सामग्री को वैसा ही रहने दिया है
जैसी वह राजाओं के ज़माने में थी
यह जो आदमी
मेज़ की दूसरी ओर सुन रहा है तुम्हें
कितने करीब और ध्यान से
यह राजा नहीं जिलाधीश है !
यह जिलाधीश है
जो राजाओं से आम तौर पर
बहुत ज़्यादा शिक्षित है
राजाओं से ज़्यादा तत्पर और संलग्न !
यह दूर किसी किले में — ऐश्वर्य की निर्जनता में नहीं
हमारी गलियों में पैदा हुआ एक लड़का है
यह हमारी असफलताओं और गलतियों के बीच पला है
यह जानता है हमारे साहस और लालच को
राजाओं से बहुत ज़्यादा धैर्य और चिन्ता है इसके पास
यह ज़्यादा भ्रम पैदा कर सकता है
यह ज़्यादा अच्छी तरह हमें आजादी से दूर रख सकता है
कड़ी
कड़ी निगरानी चाहिए
सरकार के इस बेहतरीन दिमाग पर !
कभी-कभी तो इससे सीखना भी पड़ सकता है !
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ननिश्चय ही, कड़ी दृष्टि रखनी पड़ेगी।
By: प्रवीण पाण्डेय on नवम्बर 5, 2011
at 2:12 अपराह्न
सटीक बात…to the point…
By: देवांशु निगम on नवम्बर 18, 2011
at 6:32 पूर्वाह्न
पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (4) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
By: ब्लॉग बुलेटिन on नवम्बर 10, 2013
at 6:31 पूर्वाह्न
बेहतरीन ! बड़ी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया है जिलाधीश की क्षमताओं का ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
By: Sadhana Vaid on नवम्बर 10, 2013
at 5:10 अपराह्न