नाम प्रियंकर . गंगा-यमुना के दोआबे में जन्म और बचपन बीता . अर्ध-शुष्क मरुस्थलीय इलाके में आगे की पढाई-लिखाई . राजस्थान विश्वविद्यालय से अँग्रेजी और हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि . पीएचडी और एमबीए अधबीच में छोडा़ . बेहद आलसी किन्तु यारबाश बतोकड़ . मूलतः छापे की दुनिया का आदमी . परिचय में लोग-बाग जब कवि,सम्पादक,लेखक आदि-आदि कहते हैं तब ऊपर से गुरु-गम्भीर दिखाई देने का पूरा प्रयास करते हुए भी मन किलक-किलक उठता है . लेखन की शुरुआत बीसेक साल पहले ‘धर्मयुग’ से की . कोलकाता से प्रकाशित प्रौद्योगिकी-केन्द्रित पत्रिका ‘दर्पण’ का सम्पादक तथा साहित्यिक और सामाजिक आलोचना की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘समकालीन सृजन’ के सम्पादक-मण्डल का सदस्य . उत्तर-आधुनिक बाँग्ला कविता का हिन्दी अनुवाद किया तथा समकालीन सृजन के ‘धर्म,आतंकवाद और आज़ादी’ तथा ’यात्राओं का ज़िक्र’ आदि अंकों का सम्पादन . संस्कृतिकर्मी के रूप में मित्रमण्डली के साथ मिल कर सांस्कृतिक संगठन ‘ कला सृजन अकादमी’ की स्थापना . कन्चौसी (ज़िला-इटावा/कानपुरदेहात/औरैया -उ.प्र.), गंगापुर सिटी, नवलगढ, सीकर, अलवर,सरदारशहर, जयपुर(राजस्थान) और पन्जिम(गोआ) में उड़ने के बाद पतंग अब हुगली के किनारे कोलकाता के आसमान पर . यानी धुर पश्चिम से धुर पूर्व की ओर रुख . कबीर-तुलसीदास-भारतेन्दु-प्रेमचन्द-निराला-नागार्जुन-केदार-भवानी भाई-फणीश्वरनाथ रेणु-राही मासूम रज़ा-श्रीलाल शुक्ल-मनोहरश्याम जोशी-रघुवीर सहाय-केदारनाथ सिंह-लीलाधर जगूडी़-विजेन्द्र-भगवत रावत और उदयप्रकाश से ले कर गोर्की-स्टाइनबेक-मार्खेज़-डेरेक वॉल्काट-हैरल्ड पिन्टर और ओरहान पामुक तक का रसिया पाठक और जुगालीकार . ब्लॉग — चिट्ठा — आदि की आभासी दुनिया में नया घुसपैठिया . सार्वजनिक क्षेत्र के एक वैज्ञानिक संस्थान से सम्बद्ध . कोलकाता में एक बीबी और दो बच्चे मेरे संरक्षक हैं .
जैसे चींटियां लौटती हैं बिलों में / कठफ़ोड़वा लौटता है काठ के पास …….
ओ मेरी भाषा ! मैं लौटता हूं तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है मेरी आत्मा । (केदारनाथ सिंह)
Excellent Start for a novice Blogger. Aapka ye chittha nirantar kavitaaen padhaata rahe.
By: Aseem on अगस्त 23, 2006
at 5:58 पूर्वाह्न
स्वागत लिखना शुरू करने के लिये।
By: अनूप शुक्ला on अगस्त 24, 2006
at 2:08 पूर्वाह्न
शमशेर बहादुर की कविता
मैनें कितने किए उपाय
किंतु न मुझसे छूटा प्रेम।
सब विधि जीवन था असहाय
किंतु न मुझसे छूटा प्रेम।
By: रमन मिश्र on अक्टूबर 4, 2006
at 3:59 अपराह्न
कविताई शुरुवात अच्छी लगी…स्वागत है ब्लोग जगत मे…लिखते रहेँ.
By: विजेन्द्र एस विज् on अक्टूबर 7, 2006
at 5:32 पूर्वाह्न
Welcome to the bolgger’s world…. I liked ‘pehchaan’….keep it up….
u always were different……
By: ShrutiDhar on अक्टूबर 12, 2006
at 10:07 पूर्वाह्न
केदारनाथ सिंह की कविता , कितना सच कितना सही और कैसे सुंदर भाव
By: pratyaksha on अक्टूबर 13, 2006
at 4:05 पूर्वाह्न
प्रियंकर भाई,
एक बहस में पडा हूं.आपको भी निमन्त्रित कर रहा हूं.बहस नीचे लिखे चिट्ठों और उनसे जुडी कडियों पर है :
http://samatavadi.blogspot.com , http://hindiblogs.com/hindiblog/2006/gandhi-gita-golavalkar-my-reply.html
आपका ई-पता न होने के कारण,टिप्पणी के रूप में यह ख़त.
विनीत,
आपका ,
अफ़लातून.
By: अफ़लातून on नवम्बर 27, 2006
at 4:51 अपराह्न
प्रियंकर जी, आपका काम निश्चित रूप से प्रियतर है । बधाईयां । कृपया आप http://www.srijangatha.com पर भी लिख सकते हैं । प्रतीक्षा रहेगी आपकी रचनाओं की । साधुवाद ।
By: जयप्रकाश मानस on दिसम्बर 14, 2006
at 11:41 अपराह्न
प्रियंकरजी,
भोजपुरी के कुछ लोकगीत मुझे प्राप्त हुए है जिनको नियमित रूप से http://www.mumbaiblogs.in पर देने का प्रयास करूंगा. इस संकलन को और समृद्ध करने में आपका सहयोग भी अपेक्षित है.
धन्यवाद
शशि
By: शशि सिंह on दिसम्बर 15, 2006
at 7:01 पूर्वाह्न
hallo,
welcome to the world of hindi blog but u know i m also very new.
ur experiences works on the hindi blog and i really appreciate.
keep continue great work of urs.
By: divyabh on दिसम्बर 22, 2006
at 8:00 अपराह्न
आप मेरे अनुवाद चिठ्ठे पर आयें और अभिप्राय दे गए उसके लिये शुक्रिया। आपका सुझाव मुझे अच्छा लगा। मैं कुछ हिन्दी कविताओं का भी अनुवाद सादर करने का प्रयास करुंगा।
तुषार जोशी, नागपुर
By: तुषार जोशी on जनवरी 25, 2007
at 1:07 पूर्वाह्न
प्रभावी प्रोफ़ाईल प्रियंकर जी।
ऐसे ही कविताओ का रसास्वादन करवाते रहें।
आपकी कविताएं पढ़ने के बाद “गुनने” की भी मांग करती हैं।
साधुवाद
By: संजीत त्रिपाठी on फ़रवरी 20, 2007
at 8:25 पूर्वाह्न
क्या मस्त प्रोफाइल लिखा है प्रियंकर जी. आपसे तो ईर्ष्या होती है. बस समस्या यह है कि कविता की विधा को हमसे रूठे जमाना गुजर गया. कविता की रूमानियत जिन्दगी के थपेडो़ ने सुखा दी है.
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on मार्च 29, 2007
at 6:21 पूर्वाह्न
डॉ देवेन्द्र सिंह जी अगर फॉरवर्ड न करते तो आपसे परिचय ही नहीं हो पाता प्रियंकर जी । मुझे तो लगता था कि जैसे सरकारी अधिकारियों की जमात में चिट्ठाकारों की कमी है लेकिन अनूप शुक्ल और आप जैसे लोग इस रिक्त को भर रहे हैं और अच्छी तरह से भर रहे हैं । मैं चिट्ठा लिखता तो नहीं लेकिन पढ़ता अवश्य हूं ।
वैसे तो बहुत नजदीक का हिसाब निकलता है लेकिन पहली किश्त में इतना ही कि जहां बचपन बीता आपका, वहीं कहीं पास में ही मैंने भी बचपन में अपने घुटने फोड़े थे ।
By: राकेश दुबे on अप्रैल 13, 2007
at 9:41 पूर्वाह्न
आपकी बहुत अच्छी तस्वीर खींची है आपने.
By: chhattisgarhnews on अप्रैल 13, 2007
at 1:37 अपराह्न
प्रियंकर जी शुक्रिया हौसला बढ़ाने का । ये ब्लॉग खासतौर पर गीत-संगीत और साहित्य की चर्चा के लिये ही है । पर मुझे तस्वीर खींचने की भी खुजाल है । फिलहाल एक ही ब्लॉग में ये सब करने का प्रयास किया जायेगा । अब चिट्ठा परिवार के ज़रिये संपर्क बना रहेगा
शुक्रिया फिर से यूनुस
By: yunus on अप्रैल 21, 2007
at 8:19 पूर्वाह्न
आज आपने इतनी प्रशंसा कर दी मेरे ब्लॉग पर कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आपको क्या कह कर धन्यवाद दूं. बस, आपकी कलम बड़ी प्यारी लगती है – क्या मुझे देंगे – चाहे कुछ समय को उधार ही सही.
By: Gyandutt Pandey on मई 15, 2007
at 11:27 पूर्वाह्न
well , well , well …..i never knew u r a kavi ( i shud say writer ). well i m a fiction writer n i invite u to write sum drama …u know wht i want to say …why dont u write sum concpets 4 indian television …i know u ppl dont like saas- bahu …give us nice concept v will try to change d face …
manish paliwal
By: manish paliwal on जून 8, 2007
at 12:44 अपराह्न
Hello! Good Site! Thank you!
By: llicemlqtg on जुलाई 2, 2007
at 9:14 पूर्वाह्न
आभारी हूं जो आपने ध्रुवदेव जी की तसवीर को आपने अपने ब्लॊग पर जगह दी और आभार भी जताया.
By: irfan on अगस्त 24, 2007
at 7:56 पूर्वाह्न
[…] तो उनकी भाषा के इतने मुरीद हैं कि उनसेकहते हैं-आपकी कलम बड़ी प्यारी लगती है – क्या […]
By: फुरसतिया » किलक-किलक उठने वाला सम्पादक और समकालीन सृजन on अक्टूबर 19, 2007
at 6:47 अपराह्न
pl.apana E-Mail pata bhejen.
jitendra srivastava
By: jitendra srivastava on अप्रैल 8, 2008
at 4:53 पूर्वाह्न
प्रियंकर पालीवल जी,
नमस्कार,
आपका पत्र देखा, आपका नाम संदर्भ के रूप में जोड़ दिया हूँ, वैसे यह लेख http://samakaal.wordpress.com से लिया था, उस समय मैंने ‘samakal’में एक पत्र भी दिया था जो इस प्रकार है-
———————————–
June 15, 2008 at 1:46 pm
कोलकात्ता के हिन्दी रंगमंच लेख आपके वेवपेज पर पढ़ने को मिला। बहुत ही अच्छा लेख है।
कृपया लेखक का नाम और पता हमें भेजें, ताकि इस लेख को ‘समाज विकास’ पत्रिका में प्रकाशित किया जा सके।
शम्भु चौधरी, सहयोगी सम्पादक
देखें:
http://samakaal.wordpress.com/2007/04/30/hindidramaofkolkata1/
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बीच-बीच में जो परिवर्तन किये गये हैं आप चाहें तो रहने दूगाँ, अन्यथा हटा दूगाँ।
संपर्क बनाये रखें। आपका ही: शम्भु चौधरी
By: shambhu choudhary on जुलाई 11, 2008
at 4:59 अपराह्न
अभी अनूप शुक्ला जी के ब्लॊग से आपकी भेजी शुभकामनाएँ लेकर आपके ब्ळॊग के मुखपृष्ठ तक पहुँची, तो साईडबार में यह पंक्ति देख कर चौंक गई, क्योंकि यही काव्यपंक्ति “परिचय इतना इतिहास यही” मैंने भी अपनी एक पुरानी पोस्ट के शीर्षक के रूप में चुनी व प्रयोग की है ( http://kvachaknavee.spaces.live.com/blog/cns!AA34A2EB2E55BB28!501.entry ).
अब इस प्रविष्टि पर आई हूँ तो इस संयोग पर चकित हूँ कि…..
खैर, विस्तार से नहीं बताऊँगी; संयोग को आप स्वयं ही देख सकते हैं।
शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ।
By: कविता वाचक्नवी on जनवरी 16, 2009
at 5:03 अपराह्न
सलिल भाई अगर न मिलवाए होते तो आपसे परिचय नहीं होता। अपका चिट्ठा पढ़ा। काफी अच्छा लगा। मैं भी कलकत्ते में हूं। आपका ब्लाग अच्छा है। बधाई।
By: Manoj Kumar on सितम्बर 11, 2009
at 3:43 अपराह्न
आप बहुत अच्छे जीवनी लेखक हो सकते है भाई कुछ लिख डालिए इस बावत
By: Krishna Kumar Mishra on नवम्बर 21, 2009
at 12:39 अपराह्न
[…] नाद वाले अपने प्रिय ब्लॉगर आदरणीय प्रियंकर जी हैं जो उस समय कोलकाता से इस समिति की […]
By: वर्धा में हमने जो देखा वह अद्भुत है… « blogprahari.com on जुलाई 31, 2010
at 1:04 अपराह्न
जान कर सच में ख़ुशी हुई कि आप हिंदी भाषा के उद्धार के लिए तत्पर हैं | आप को मेरी ढेरों शुभकामनाएं | मैं ख़ुद भी थोड़ी बहुत कविताएँ लिख लेता हूँ | हाल ही में अपनी किताब भी प्रकाशित की | आप मेरी कविताएँ यहाँ पर पढ़ सकते हैं- http://souravroy.com/poems/
By: Sourav Roy on दिसम्बर 4, 2010
at 6:40 अपराह्न
शुभकामनायें आपको !
By: सतीश सक्सेना on अप्रैल 29, 2011
at 1:27 पूर्वाह्न
bhai, aaj apka chiththa padha, man bahut bahut khus hua.
apne bare me sab kuchh kah dala.
madan
By: madan muwal on अगस्त 5, 2011
at 6:15 पूर्वाह्न
प्रियंकरजी,
मुझे नेट की दुनिया में विचरण करना नहीं आता। फिल्म जगत में गोपालसिंह नेपाली के योगदान पर कुछ लिखना है। खोजते हुए मैं आप द्वारा सुलभ कराये उस गाने तक पहुँचा- दर्शन दो…अँखिया प्यासी रे… । इतना अच्छा गीत सुनाने का शुक्रिया। यदि नेपालीजी के इस पक्ष पर कुछ कहीं हो, तो बतायें, सुलभ करायें। आप तो इस कमेंट से मुझे खोज ही लेंगे, जो मुझे नहीं आता। यूँ मेरा नं है- 09453519830. बात करके अच्छा लगेगा।
By: सत्यदेव त्रिपाठी on अगस्त 10, 2011
at 1:41 पूर्वाह्न
विनोद जी की हर कविता मे एक अलग तरह की ताजगी रहती है । उनसे मेरा मिलना होता रहता है । उनकी बातों में वही सरलता है जो उनकी कविताओं मै है।
By: sanjeev buxy on नवम्बर 20, 2011
at 7:04 पूर्वाह्न