प्रियंकर/तुम मेरे मन का कुतुबनुमा हो

 

तुम मेरे मन  का कुतुबनुमा हो

 

भले किसी और की हो जाएं

ये गहरी काली आंखें

वे सितारे मेरी स्मृति के अलाव में

रह-रह कर चमकते रहेंगे जो

उस छोटी-सी मुलाकात में

चमके थे तुम्हारी आंखों में

 

भटकाव के बीहड़ वन में

वे ही होंगे पथ-संकेतक

गहन अंधियारे में

दिशासूचक ध्रुवतारा

तुम मेरे मन का कुतुबनुमा हो

अभौतिक अक्षांसों के

अलौकिक फेरे

संभव नहीं हैं तुम्हारे बिना

 

जीवन लालसा के तट पर

हांफ़ते रहने का नाम नहीं

किंतु अब निर्वाण भी

प्राथमिकता में नहीं है

 

मोक्ष के बदले

रहना चाहता हूं

तुम्हारी स्मृति के अक्षयवट में

पर्णहरित की तरह

 

स्नेह की वह सुनहरी लौ

नहीं चाहता –  नहीं चाहता

वह बेहिसाब उजाला

अब तुम्हें पाने की

कोई आकांक्षा शेष नहीं

 

जगत-जीवन के

कार्य-व्यापार में

प्रेम का तुलनपत्र

अब कौन देखे !

 

अपने अधूरे प्रेम के

जलयान में शांत मन

चला जाना चाहता हूं

विश्वास के उस अपूर्व द्वीप की ओर

जहां मेरी और तुम्हारी कामनाओं

के जीवाश्म विश्राम कर रहे हैं ।

 

*******

 

स्वाधीनता ( शारदीय अंक 2006 ) से साभार

[ भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी का मुखपत्र ]

 

प्रतिक्रियाएँ

  1. pl,e-mail pata bhejen.
    jitendra srivastava

  2. प्रियंकर जी,

    जल पोत के कपतान के रूप में मैने छ: वर्षों तक काम किय है। मेरा समुद्री जीवन कुछ 15 वर्षों का रहा है। अक्षांश, देशान्तर और कुतुबनुमा मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। समुद्र का खारा पानी लहू बन कर मेरी वह्लि में आज भी दौड़ता है – यह सब इतने रूहानी भी हो सकते हैं यह तो बस आपकी कविता पढ़ कर ही पता चला। मन करता है एक बार फिर मन की पतवार खोल उमंगों की हवाओं से कहूँ – बहा ले चलो वहीं जहाँ अभिव्यक्ति का सागर साँसे ले रहा है।

    प्रशिक्षण पोत ‘राजेन्द्र’ पर नाविक जीवन पर एक गीत सीखा था, आपकी कविता पढ़ कर याद आ गया, कुछ पंक्तियाँ

    We’re on the road, we’re on the road to anywhere,
    with never a heart ache with never a care,
    got no homes,
    got no friends
    and thankful for anything
    the good Lord sends…..

    ***

    …..that the road to anywhere, the road to anywhere
    will lead to somewhere some day
    we’re on the road….

    ये है नाविक जीवन – एकाकी, द्वीप के समान अलग थलग लेकिन फिर मद मस्त, खुश, बिंदास्त और तूफ़ानों में भी आशा का दिया जलाये हुये।

    ….somewhere…someday…..

    बीच बीच में आंग्ल भाषा का प्रयोग किया है क्योंकि यह गीत मूलत: आंग्ल भाषा में है और अनुवाद में भावनायें शायद कहीं गुमनाम सी हो जातीं।

    …मेरे जहाजों की याद दिला दी आपने। धन्यवाद!

    Comment by अनुराग श्रीवास्तव — October 17, 2006 @ 8:58 am

    कविता उपमानों का बेहद सजीव रूप है,
    काफ़ी सारे नवीन उपमाएं आपकी सृजनता की प्रतीक हैं,
    जैसे- कामनाओं के जीवाश्म, विश्वास के अपूर्व दीप,स्मृति का अक्षय वट…..!!!
    यही कविधर्म है, काव्य में भावनाओं के रोपन सुंदर शिल्प सहित- आप सफ़ल हैं इसमें
    -रेणू

    Comment by renu ahuja — October 18, 2006 @ 6:25 pm

    अनुराग जी और रेणु जी ,
    कविता को पढने और प्रशंसात्मक टिप्पणी दर्ज़ करने के लिए आपका आभारी हूं . जब कोई पीठ थपथपाता है तो उत्साह चौगुना हो जाता है .

    अनुराग भाई,
    आप का पत्र पढते-पढते मुझे ऐसा लगा जैसे मैने आपके साथ कोई समुद्री यात्रा की हो . इतना ‘पैशन’ था आपके पत्र में कि मैं यहां कोलकाता में बैठा उस थरथराहट को महसूस कर सकता था . कामना है कि जीवन के तमाम तूफ़ानों के बीच भी आपकी मस्ती,खुशी और बिन्दासपना कायम रहे . आप जिस तरह कविता से जुड़े या जिस तरह आपने कविता को अपने जीवन से जोड़ कर देखा उसने मुझे कहीं बहुत गहरे प्रभावित किया .

    Comment by प्रियंकर — November 6, 2006 @ 10:39 am

    aaisa laga ke aap nai mai rai dil ki baat sabdo mai uttar di hai. Hindi mai likanai ki koshish kar raha ho.

    Comment by Manoj Kumar Jha — November 18, 2006 @ 3:17 pm

    बहुत उत्तम भाषा, प्रवाहमयी रचना, प्रगाढ प्रेम की सूक्ष्म और परिपक्व यादें…साथ ही एक कामना.. प्रेममय होने की.. बहुत अच्छी लगी..

    Comment by manya — July 23, 2007 @ 6:30 pm

    I am thrilled to open this website. Read some of the poems which have the good literary
    taste. I feel it is my duty to congratulate the editor for his innovative ideas and mainta
    ining literary standard. Congrats once again.

    Comment by arun hota — August 1, 2007 @ 6:31 am

    मन को छूने वाली कविता .

    Comment by रोमी — March 13, 2008 @ 6:26 pm

    Marhaba!

    Comment by Harsha Prasad — July 7, 2008 @ 2:32 pm

  3. rom rom me basatee huee kawita……thanks alot


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