Posted by: PRIYANKAR | अप्रैल 17, 2016

प्रार्थना – 4 / सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

प्रार्थना – 4

 

यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे

जब हारा हूं तब न आइए।

 

वज्र गिराओ जब-जब तुम

मैं खड़ा रहूं यदि सीना ताने

नर्क अग्नि में मुझे डाल दो

फिर भी जिऊं स्वर्ग-सुख माने

मेरे शौर्य और साहस को

करुणामय हों तो सराहिए

चरणों पर गिरने से मिलता है

जो सुख वह नहीं चाहिए।

 

दुख की बहुत बड़ी आंखें हैं

उनमें क्या जो नहीं समाया

यह ब्रह्माण्ड बहुत छोटा है

जिस पर तुम्हें गर्व हो आया

एक अश्रु की आयु मुझे दे

कल्प चक्र यह लिए जाइए।


प्रतिक्रियाएँ

  1. Achi jankari thanx

  2. Nahi bahut bahut dhanyawaad..Issue kawita ko Na Jane kab se dhoondh rha tha…..Mere swarthi man ijajt to nahi deta…lekin yadi mere kisi kaam ka you punya mujhe Mila ho to Wo aapko samarpit…kotushah dhanyawaad..

    K.k.kandpal
    Upsc aspirant
    Hindi ka sewak


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