अटपटा छंद
भारतवर्ष उदय
भारतीयता अस्त
रोयां-रोयां कर्जजाल में
नेता-नागर मस्त
ब्रह्मज्ञानी बिरहमन
इश्क-दीवाना दरवेश
बाज़ार का बाना
साधू का वेश
जनेऊ से कमर का खुजाना
मोरछल से लोबान का उड़ाना
मोबाइल पर नए क्लाइंट से बतियाना
जगत सत्यं ब्रह्म मिथ्या
घृतम पिवेत ऋणम कृत्वा
उधार प्रेम का फ़ेवीकोल
बीच बाज़ारे हल्ला बोल
द ग्रेट इंडियन शादी-बाज़ार
कन्या में डर
माथे पर प्राइस टैग
सजे-धजे वर
बनी की अंखियां सुरमेदानी
बनी का बाप कुबेर
थाम हाथ में स्वर्ण-पादुका
दूल्हे को ले घेर
नदिया गहरी
नाव पुरानी
बरसे पैसा
नाच मोरी रानी
बीच भंवर में बाड़ी
बाड़ी में बाज़ार
चौराहे पर चारपाई
आंगन में व्यापार
अपलम-चपलम गाड़ी
बैकसीट पर प्यार
माया ठगिनी रूप हज़ार
लंपट तेरी जयजयकार
आजा मेरे सप्पमपाट
मैं तनै चाटूं तू मनै चाट
देवल चिने अजुध्या नगरी
मन का मंदिर सूना
घट-घट वासी राम के
अंतर को दुख दूना ।
********
इतनी सुंदर सारगर्भित रचना को अटपटा नाम देना ही बड़ा अटपटा है. प्रशंसात्मक शब्द नहीं हैं कि ठीक ठीक न्याय कर सकूँ. बहुत सुन्दर, प्रसंगिक, सार्थक, सटीक… और क्या क्या कहूं? अटपटा छंद चटपटा, लटपटा और स्वाभाविक सरस है क्योंकि रचनाकार प्रियंकर है
By: सुरेन्द्र वर्मा on अक्टूबर 5, 2009
at 12:30 अपराह्न
मस्त हैं.. आधुनिक दोहे..
By: अभय तिवारी on July 4, 2007
at 9:31 am
ताजगी से भीगी, आल्हादित कर देने वाली!
By: मैथिली on July 4, 2007
at 10:31 am
प्रियंकर की कविता
अटपटा छन्द
बाजार है तेज
भाव हुये मन्द!
By: Gyandutt Pandey on July 4, 2007
at 11:28 am
अनेकों संदेश देती सुन्दर क्षणिकाओं की टोकरी. वाह!! बहुत बढ़िया लगा.
By: समीर लाल on July 4, 2007
at 12:35 pm
आनन्द आया , पहले भी यहाँ के चक्कर लगाता था पर आज तो आप कुछ और ही रंग में रमें दिखे।
By: बोधिसत्व on July 4, 2007
at 2:43 pm
बेहतरीन लगे
ये अटपटे छंद
सघन अर्थों से संगुफित
व्यंग्य से बुझे पैने शब्द
हाइकुओं-से लड़ित
By: सृजन शिल्पी on July 5, 2007
at 9:38 am
यह मूड बार-बार आवे ।
By: afloo on July 6, 2007
at 3:47 am
By: प्रियंकर on नवम्बर 16, 2009
at 4:19 अपराह्न
Hareram Sameep 395@gmail.com
Aaj facebook par aapkee post se aadarniya Kailash Gautam ji ka ek ansh uddhrat kiya hai..dekhen
Facebook dekhen
Hareram sameep
By: Hareram Sameep on जून 17, 2014
at 5:53 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।।।
बधाई….
आपका
विमलेश
By: विमलेश त्रिपाठी on फ़रवरी 7, 2010
at 10:14 पूर्वाह्न
aanand aa gaya, itni achchi kavita padhne ko mili
By: somya,sumedha&pushpankar on अप्रैल 24, 2010
at 3:23 अपराह्न
भारतवर्ष उदय
भारतीयता अस्त
रोयां-रोयां कर्जजाल में
नेता-नागर मस्त
ब्रह्मज्ञानी बिरहमन
इश्क-दीवाना दरवेश
बाज़ार का बाना
साधू का वेश
जनेऊ से कमर का खुजाना
मोरछल से लोबान का उड़ाना
मोबाइल पर नए क्लाइंट से बतियाना
जगत सत्यं ब्रह्म मिथ्या
घृतम पिवेत ऋणम कृत्वा
उधार प्रेम का फ़ेवीकोल
बीच बाज़ारे हल्ला बोल
द ग्रेट इंडियन शादी-बाज़ार
कन्या में डर
माथे पर प्राइस टैग
सजे-धजे वर
बनी की अंखियां सुरमेदानी
बनी का बाप कुबेर
थाम हाथ में स्वर्ण-पादुका
दूल्हे को ले घेर
नदिया गहरी
नाव पुरानी
बरसे पैसा
नाच मोरी रानी
बीच भंवर में बाड़ी
बाड़ी में बाज़ार
चौराहे पर चारपाई
आंगन में व्यापार
अपलम-चपलम गाड़ी
बैकसीट पर प्यार
माया ठगिनी रूप हज़ार
लंपट तेरी जयजयकार
आजा मेरे सप्पमपाट
मैं तनै चाटूं तू मनै चाट
देवल चिने अजुध्या नगरी
मन का मंदिर सूना
घट-घट वासी राम के
अंतर को दुख दूना ।
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By: vikram on अगस्त 3, 2010
at 10:05 पूर्वाह्न
बोत अची है कवितए बोत बोत मजा आरा है पड़ने में
By: vikram on अगस्त 3, 2010
at 10:11 पूर्वाह्न
A ghera baadal kavi tu Gang ne Chand sa chhaayo !!
re priyakar a madukarsa chhand thu kathaa su laayo ?
ek binti tujne a pivda
rakh je a sada tu sur ri dhuni u hi jagayo !!!
*best luck
Devendra Sinh Rathod
dsrathod.ril@gmail.com
By: Devendra Sinh Rathod on सितम्बर 10, 2010
at 4:25 पूर्वाह्न