Posted by: PRIYANKAR | अगस्त 16, 2007

हरीश चंद्र पाण्डेय की एक कविता

 

नया साल मुबारक हो

 

झाड़ियों के उलझाव से

बाहर निकलने की कोशिश में

बैलों के गले में बंधी घंटियां बोल उठीं

नया साल मुबारक हो

 

बिगड़ी गाड़ी को

बड़ी देर से ठीक करने में जुटा मैकेनिक

गाड़ी के नीचे से उतान स्वरों में ही बोला

नया साल मुबारक हो

 

बरसों से मंगली लड़का ढूंढते-ढूंढते परेशान मां-बाप को देख

नीबू के पत्ते की नोक पर ठिठकी

जनवरी की ओस ने कहा

नया साल मुबारक हो

 

कल बुलडोज़र की आसानी के लिए

आज घर को चिह्नित करते कर्मचारी को देख

घर का छोटा बच्चा दूर से ही बोला पंचम में

नया साल मुबारक हो अंकल

नया साल मुबारक हो ……….

 

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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )

 


प्रतिक्रियाएँ

  1. हिन्दी चिट्ठालोक को उत्कृष्ट काव्य-बोध कराने वाले चिट्ठे अनहदनाद और चिट्ठेकार प्रिय प्रियंकर को भी नया साल मुबारक !
    अनहदनाद ने आज एक साल पूरा किया है। अनहदनाद ने प्रतिक्रान्ति के इस दौर में हमें सचेत किया और सही दिशा में प्रेरित भी। बाँग्ला की श्रेष्ठ काव्य-रचनाओं के सुन्दर
    कव्यानुवाद और अपनी सरल और प्रभावी रचनाओं के लिए भी प्रियंकर के प्रति आभार।
    पूरा यक़ीन है कि यह क्रान्तिकारी रचनाधर्मिता पूरे उत्साह के साथ जारी रहेगी।

  2. बहुत सुन्दर कविता । जीवन का सत्य व विरोधाभास भी कराती कविता । यदि नए नए हिन्दी पढ़ने वालों के लिए कवि का परिचय भी करवा दें तो सोने में सुहागा होगा ।
    घुघूती बासूती

  3. VERY GOOD

  4. baahut khoob


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