नया साल मुबारक हो
झाड़ियों के उलझाव से
बाहर निकलने की कोशिश में
बैलों के गले में बंधी घंटियां बोल उठीं
नया साल मुबारक हो
बिगड़ी गाड़ी को
बड़ी देर से ठीक करने में जुटा मैकेनिक
गाड़ी के नीचे से उतान स्वरों में ही बोला
नया साल मुबारक हो
बरसों से मंगली लड़का ढूंढते-ढूंढते परेशान मां-बाप को देख
नीबू के पत्ते की नोक पर ठिठकी
जनवरी की ओस ने कहा
नया साल मुबारक हो
कल बुलडोज़र की आसानी के लिए
आज घर को चिह्नित करते कर्मचारी को देख
घर का छोटा बच्चा दूर से ही बोला पंचम में
नया साल मुबारक हो अंकल
नया साल मुबारक हो ……….
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
हिन्दी चिट्ठालोक को उत्कृष्ट काव्य-बोध कराने वाले चिट्ठे अनहदनाद और चिट्ठेकार प्रिय प्रियंकर को भी नया साल मुबारक !
अनहदनाद ने आज एक साल पूरा किया है। अनहदनाद ने प्रतिक्रान्ति के इस दौर में हमें सचेत किया और सही दिशा में प्रेरित भी। बाँग्ला की श्रेष्ठ काव्य-रचनाओं के सुन्दर
कव्यानुवाद और अपनी सरल और प्रभावी रचनाओं के लिए भी प्रियंकर के प्रति आभार।
पूरा यक़ीन है कि यह क्रान्तिकारी रचनाधर्मिता पूरे उत्साह के साथ जारी रहेगी।
By: afloo on अगस्त 16, 2007
at 5:36 अपराह्न
बहुत सुन्दर कविता । जीवन का सत्य व विरोधाभास भी कराती कविता । यदि नए नए हिन्दी पढ़ने वालों के लिए कवि का परिचय भी करवा दें तो सोने में सुहागा होगा ।
घुघूती बासूती
By: ghughutibasuti on अगस्त 16, 2007
at 7:44 अपराह्न
VERY GOOD
By: Kamlesh on जनवरी 1, 2010
at 9:35 पूर्वाह्न
baahut khoob
By: tejwani girdhar on दिसम्बर 31, 2010
at 3:21 पूर्वाह्न