॥१॥
पहचान
सब कुछ हरा-भरा है
पत्तों पर वही रंग है
खेतों में वही हरियाली है
सोतों में पानी
नदियों में बहाव
फिर नहीं मालूम
पहचान क्यों
सूखती जा रही है ।
॥२॥
पृथ्वी
बच्चों में भोलापन है
किशोरियों में अल्हड़पन
सोतों में पानी है
पत्तों में हरा रंग
खेतों में धान है
फूलों पर ओस
पहाड़ों पर सर्द हवाएं हैं
गायों के थन में दूध
बादलों में गड़गड़ाहट है
औरतों को गर्भ है
आदमी के शरीर पर पसीना है
इतनी सुंदर है पृथ्वी तो
यह गोल से चपटी क्यों होती जा रही है ?
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